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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्र-स.] लिनिहुँफ ट्वा हा औज्वालामालिनिनित्या देवि श्रीपादुकांपूजयामि । हीं श्रींच कौं अंचि त्रानित्यादेविश्रीपादुकां ७ पूजयामि। में ही श्री मूलमन्त्र मक्का अ: महात्रिपुरसुंदरि नि त्या देवि श्रीपादुकांपूजयामि। तेर्म स्लिकोणवत्तयो मध्ये पूर्वादिप्रादक्षिण्य क्रमे णन्यस्त्वात्रिपुरा देवीं वृत्तमध्ये न्यसेत्। पुनः अखंडे करसानंद कलेवरसुधात्मनि । स्वच्छं दस्करणामन्त्रन्ति धेहिकुल सुंदरि । अकुलस्याम्टता कारेखं ज्ज्ञान सुखप्रदे। अम्मत त्वंनि ह्यत्र वस्तनिक्किं नरूपिणि विद्रूप स्पैकरस्यं दूत त्वाख्येत त्वरूपिणि । भूत्वा पराम्टत्ता का रे मयि चिल्फुरणं कुरु । विजये विवे कदायि निविश्वाधिक चरण दर्शनादर्श विश्वग्रासपटीयसीविश्वेदिय विजयदा यि नितमस्ते । अज्ञानघन दीप्तेत्वं ज्ञानाग्निज्वालरूपिणि। आ नंदा ज्याहतिप्रीतेसम्मकज्ञानं प्रसीदमे। ऐंद्रीश्री ही भंगिभंगिम हा भंगिम मवैरिभंगं कुरु मम प्रसंनंकुरुकुरु स्वाहा। ऐं ह्रीश्री हसूक्ष्मलव यू में ह सक्ष्सलवरयू ई हसूक्ष्मल वरयू और ज्ञानप्रकाशनाय विद्यासा नाय स्वाहा । तान्मन्त्रान् हृदयंसट राजपेत् । पुनः में हीश्री पद्ममुद्रादेविश्री पादुकांपू जयामि। ऐं ह्रीं श्रीं त्रिखंडमुद्रा देवि श्रीपादुकां पू जयामि।ऐं ह्रीं श्रीं यौनिमुद्रादेवि श्रीपादुका पूजयामि। इति मुद्रां प्रदर्श्य । का कचं चपुट क्रमेणमारुतंपीला हा हा रामः हाइत्य कचार्य सुषुम्नापर्व कला सं इतिप्रबुद्धांकुंडलिनींदा दशां तंनी वा तत्र स्थपरमशिवेने कर स्पंवि || ७६ For Private And Personal
SR No.020571
Book TitlePrapanchasara Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGiryanendra Saraswati
PublisherGiryanendra Saraswati
Publication Year
Total Pages755
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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