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भण्+ ईअ+ई =भणीअई गाहा=पढ़ी जाती हुई गाथा। भण् + आवि+ इज्ज =न्त+भणाविज्जन्तो मुणी=पढ़ाया जाता
हुआ मुनि, इत्यादि ।
वाक्य-प्रयोग परायत्तो ससंतो न जीवइ (परतन्त्र व्यक्ति साँस लेता हुआ भी जीता नहीं है); कणु सदा हसंती बोल्लइ (कनु सदा हंसती हुई बोलती है); मेहो गज्जतो बरसइ (मेघ गर्जता हुआ बरसता है); हं पाढं पढन्तो सव्वरत्ति जग्गीअ (मैं पढ़ते हुए सारी रात जागता रहा); अझीयमाणो छत्तो सुहं पावइ (पढ़नेवाला छात्र सुख पाता है); गुरुणा धम्म कुणमाणाणं सावगाणं उवएसो दिण्णो (गुरु के द्वारा धर्म करते हए श्रावकों को उपदेश दिया गया)।
भूतकालिक कृदन्त प्राकृत में भूतकालिक कृदन्तों का प्रयोग अधिक पाया जाता है। धातु में 'अ' (क्त>अ) प्रत्यय जोड़ने से भूतकालिक कृदन्त रूप बनता है तथा धातु के अन्त्य 'अ' को 'इ' हो जाता है; यथा
गम् + इ-+-अ== गमिओ (जाकर, गया हुआ) चल+इ+अ =चलिओ (चलकर, चला हुआ) कर्+इ+अकरिओ (करके) हो+इ+अ==होइअ (होकर) इत्यादि ।
प्रेरणार्थक भूतकालिक कृदन्तों के लिए धातु में आवि और इ प्रत्यय जोड़कर फिर 'अ' प्रत्यय जोड़ते हैं; यथा
हस् + आवि + अहसाविअं (हँसाकर) ; कर+इ+अकारि (करवाकर) अ को दीर्घ ।
सम्बन्धसूचक भूतकालिक कृदन्तों में तुं, अ, तूण, तुआण, इत्ता, इत्ताण, आय, आए इनमें से कोई भी एक प्रत्यय लगाया जाता है। धातु के 'अ' को इ अथवा ए आदेश होता है; यथा
प्राकृत सीखें : ५५
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