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________________ - - mes R | तीजुतो गुरु वचन केहे तव ते त्रणमां इहां प्रथम फेटावंदनतो बंदे बे वार। समस्त संघने वीषे॥ तईअंतु बंदण दुगे। तब मिहो आश्मं सयल संघे॥ बीजं थोनवंदनतो मुनीद आचार्यादी पदस्थने वली तीजु र्शन नपगरणवंतने होय। वंदन होय ॥४॥ बीयंतु दंसणीणय। पयघ्यिाणं च तश्यंतु ॥४॥ | वंदनकर्म चितीकर्म कृतिकर्मा पूजाकर्मी वली वीनयकर्म? एपांचे वंदणचिईशकिई कम्मंश पूया कम्मच विणयकम्मएच करवू वंदनकर्म कोने केने करवू पण। केइ वखते केटलीवार वंद न कर्म करवं ॥५॥ कायव्वं कस्सवि केणवावि। काहेव कइखुत्तो ॥५॥ केटलीवार मस्तक नमावबुं। केटला प्रकारना आवस्यक करी वी सेस शुध थर्बु ॥ कश्नणयं कसिरं। कशविहि आवस्सएहिं परिसुद्ध। केटला दोष वीषेष मुकीने। वांदणा देवां ते सा कारण माटे देवां वा।। कई दोस विप्प मुकं। किश् कम्मं कीस कीरश्वा ॥३॥ वांदणाना पांचएनाम पांचए वांदवा प्रयोग पांचवांदवा योग पां|| नदाहरण। चर चार पासे वांदणा न देवराववां॥ पणनामरपणाहरणा। अजुग्ग पण३ जुग्ग पण चन चारपासे वांदणा देवराववां चारधनांमे नही नी अदाया५॥ पांच५ वांमे वांदणानुं नीषेध। षेध आत कारण जाणवां ॥७॥ चन दाय पण निसेहा। चन अणिसेह कारणया॥७॥ वांदणामां अवसक २५ मुहपती सरीरनी पमीलेहण प्रतेके पची
SR No.020562
Book TitlePrakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavchand Jechand Shah
PublisherRavchand Jechand Shah
Publication Year1888
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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