________________
६॥
-
ता श्री देवेंद्रसूरिजीइं आप मा कालमां॥३॥ नु नाम सोचव्यु।
देविंद विंद महियं। परम पयं पावई लहुसो॥३॥|| इति चैत्यवंदन नांमे नाष्य प्रक्रण समाप्तं ॥
॥इति चैत्यवंदना नाप्य संपुर्ण ॥
हवे बीजी गुरु वंदन वीधी नाष्य लखिए बीए ॥
॥अथ गुरुवंदना नाष्य लिप्य ते॥ गुरु वंदन मोहोटु त्रण प्रकारे। ते फेटावंदन? थोनवंदन' द्ववाद
साव्रत वंदन गुरुवंदण मह तिविहं। तं फिदार बोनश्बारसावत्तं३॥ मस्तक नमामवादीके करी प्र वली खमासमण बे देइ वांदे ते थम वंदन।
बीजु वंदन ॥१॥ सिर नमणासु पढमं। पुन खमासमण दुग बीय॥१॥ जेम दुत राजा प्रते प्रथम। नमीने कार्य प्रते कहीने पडे राजये। जह दून राया।
नमिकं कऊं निवेश्क पछा। रजा आप्ये पण वांदीने। स्वस्थानके जाय एमज इहां ख
मासमण बीजुं ॥२॥ विसळीनवि वंदिय। गनर एमेव च दुगं ॥२॥ सम्यक्त आचारनु मुल ते। वीनय ते गुणवंतनी सेवना नक्ती॥
आयारस्स मूलं। विण सो गुणवन्थ पमिवत्ति॥ ते सेवा जगती वीधाई करी तेनी वीधी इम द्वादसाव्रते करी वंदवा थकी होई।
॥३॥ साय विही वंदणा। विहि इमो बारसावत्ते ॥३॥