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॥ते वली नाल स्थनने वीषे। अमामे कोइ आचार्य नलगामवा
कहे ॥१॥ ते पुण निलामदेसे। लग्गा अन्ने अलग्गत्ति॥२७॥ ||हवे जोगमुद्रा पांच अंग सास्तव वा नमुथ्थुणं आये स्तुतीइं| नमावा ते खमासमण। होय जोगमुद्रा॥
पंचंगो पणिवान। थयपाढो होइ जोगमुद्दाए । |वंदण ते अरिहंतचेइयाणं प्रणीध्यांनत्रीक मुक्ता सुक्ती मुद्रा
आये ते जिनमुद्राए। इं कहे ॥१॥ | वंदण जिणमहाए। पणिहाण मत्ता सत्तीए ॥१॥ हवे प्रणीध्यान त्रीक जावंती जावंत केवी साहु ए मुनी वंदण ज ये चैत्यवंदन।
यवीयराय प्रार्थना सरुप अथवा ॥ | पणिहाण तिगं चेश्य। मुणि वंदण पत्रणा सरूवं वा। मन वचन काय ए जोग बाकी त्रीकोनो अर्थतो प्रगट डे इती त्रण एकाय ते।
॥१ ॥ मण वय काएगत्तं। सेस तिअबोध पयमुत्ति॥२॥ हवे अनीगम द्वार सचीत व अचित वस्तनु अणतजवु? मन स्तुनु तजवु वा मुकवु। एकाय करवु ॥
सचित्त दव्य मुलण। मचित्त मणुसणंश मणेगत्तं३॥ एक सामी वा वस्त्र अखंमनु बेहाथ जोमी मस्तक नमाववु जिन नत्तरासण करवु। दिवेथी॥२०॥
ग सामि उत्तरासंगछ । अंजली सिरसिजिणदिव्याण इंम पंच वीध अनीगम वा स अथवा मुके राजा होयतो राजनां नमुख जq।
चीन्ह ते। इअ पंचविहा निगमो। अहवा मुच्चंत्ति रायचिन्हाई॥