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________________ - वंदिता पुन्न फलं। सयगुणं तंपि पुमरीए ॥ १३ ॥ पूजा कीधे थके जे पुन्य एकगुणु तेहथी एकसोगुणु पुन्य प्र थाय ते। तीमा नरावे पूजे थाय वली॥ पूा करणे पुन्नं। एगगुणं सयगुणंच पमिमाए॥ तेथी श्री जिननूवन करावे तेथी अनंतगुणु पुन्य फल शत्रुज हजारगुणु पुन्य। य तीर्थ पासण करवे होय ॥१४॥ जिणनवणेण सहस्सं। पंतगुणं पालणे होई ॥१४॥ अनुनी प्रतिमा अथवा दे श्री शत्रुजयगिरी तीर्थ मस्तके वा न हरासर। पर करे करावे ते ॥ पमिमं चेश्हरं वा। सित्तुंजगिरीस्स मबए कुण ॥ जोगवीने नर्तक्षेत्रनु राज्य वसे स्वर्गलोके तथा मोक्षे ॥१५॥ एटले चक्रवर्ति पद जोगवी।। नूतूण नरहवासं। वस सग्गेण निरुवसग्गे॥२॥ नोकारसहिनो पञ्चखांण पो पुरीमढनो पञ्चरखांण एकासणानोप रसहिनो पञ्चखांण। . चखांण वली आंबलनो पञ्चरखांण। नवकार? पोरिसीए।पुरिमद्वेगासणंचआयामंय॥ एटलां पञ्चखांण करे ने श्री फलनो वंढक करे नपवास तप हवे| पुंगरकितीर्थ वली संनारे। ए बनु प्रतेके फल कहे ॥१६॥ पुमरीयंच सरंतो। फलंकंखी कुंण अनत्तछंद ॥२६॥ न त ते बेनपवासनु पो अपम यां० अर्धमास ते पन्नर न ते त्रण नपवासनुश्पु० दशम ते चा पवासनु ५ न मासखमण र नपवासनु३ एक दुवालस ते पांच ते एक मासना उपवासनु ६ अपवासनुध। बहमश्दसमदुवालसाणंमास घमासएखवणाणं - - -
SR No.020562
Book TitlePrakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavchand Jechand Shah
PublisherRavchand Jechand Shah
Publication Year1888
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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