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सर्व पुंन्य।
मे शेजे ॥५॥ | जं लहई तब पुन्नं। एगो वासेण सेत्तुंजे ॥५॥ |जे कोई पण नाममात्र तीर्थ। स्वर्गलोके पाताललोके मनुष्यलोके। | जं किंची नामतीबं। सग्गे पायाले माणुसेलोए॥ ते सर्व तीर्थ नीचे दिगं। एक पुंमरीक तीर्थ वांदे थके ॥१०॥
तं सव्व मेव दिई। घुमरिए वंदिएसंत्ते ॥१०॥ प्रतीलाजतां वा नक्ती क शत्रुजय सनमुख चालतां दिठे थण रतां थकां चतुर्विध संघनी दिवे ते शत्रुजय पर्वत नीश्चे फल था विमलाचल।
य ते कहे ॥ पमिलानंते संघं। दिछ मदिव्य साहू सेत्तुंजे ॥ कोमगुणु फल अणदिवे ध्या दिवे थके तो अनंतगुणु फल थाय ने होय वली।
॥११॥ ___ कोमिगुणंच अदिछे। दिव्य अणंतये होई ॥१॥ केवलज्ञांननी नत्पती थइ नीर्वांण वा मोक्षप्राप्ती ने जीहां मु जीहां।
नियोने॥ केवलनाणु प्पत्ती। निव्वाणं आसि जब साहूणं ॥ ते श्री पुंमरीकतीर्थ वांदेथके। ते सर्व वांद्यां पूर्वोक्त सर्व मुनि तीहां१२
पुमरिए वंदित्ता। सव्वे ते वंदिया तब ॥१२॥ अष्टापदतीर्थ रूपनदेव मोक्षक्षे पावापुरी वीर मोक्षांम चंपांनग त्र तथा समेतसीखरतीर्थ २० री वासुपूज्य सिद्धक्षेत्र गिरनारती जिन सिद्धक्षेत्र। . र्थ नेमनाथजीनु मोक्षम ॥ _ अनवयं समेए। पावा चंपाइं नहंत नगेय ॥ ए तीर्थ वांदे जे पुन्य फ सोगुणु फल तेथी पण पुंमरीकतीर्थ लथाय।
बेटे ॥१३॥