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२न्य ध्याइजीए श्री परमात्मा थापणा समांन गणीए बीजा जी वीतराग देव प्रते। वोने॥
काज परमप्पा। अप्पसमाणो गणिज्ज परो॥ करीए नही राग द्वेष कोइने बेदीजे इंम चालतां संसारनां दुःख कीवारे।
प्रते॥२॥ किज न राग दोसो। गिनिज तेण संसारो ॥४॥ ए रीते जला नपदेशरूप र जे प्रांणी ए रीते थापे जली बाप ननी माला।
णे रदये वा कंठे ॥ उवएस रयण मालं। जो एवं व्व सुछु नि कं॥ ते प्रांणीने नीरूपद्रव जे मोक्षनां वक्षस्थले भावी रमे पोतानी इ सुखनी लक्ष्मी।
छाए ॥२५॥ सो नर सिव सुह लही। वलयले रम सहाई॥श्या
ए रीते थयो उपदेशरत्ननो नंमार संपुर्ण ॥ इति नपदेसरत्न कोस समाप्तं ॥
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अथ शास्वता जिननामादी संख्या स्तवन॥ प्रथम शास्वताजिन चारनामे श्री चंद्रानन३ श्री वारिषेणध सां ते केहे ज्ञान अतिशय लक्ष्मी मान्य केवलीरूप तारागणमां चं वंत रूषनाननर श्रीवर्धमान। द्रमा समान ते प्रते॥ | सिरिन्सहरवघमाणं। चंदाणण३वारिसेणजिणचंदं नमीने शास्वता जिन नवन वा संख्या वा गणतिनु समस्त व प्रासादनी।
रणव करूंढुं हुं ॥१॥ नमिसासय जिण नवण। संख परिकित्तणं काह॥२॥ जोतिषीदेव व्यंतरदेवने वी सातकोम बहोतेरलाख नूयनपतिदेवता