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मंत्र तंत्र विद्या न जोइस ।
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जइस नही परना घरमा एकलो बी जादीक वीना ॥ गम्मइ नइ परग्गहे अबीएहिं ॥
ननु कुलीप तेहने होय ए रीते
॥२०॥
मंतंताण न पासे ।
आपणी पादरी प्रतीज्ञा वा वृत पालीए । पमिवन्नं पालिका ।
मीत्रने घेर जमीए मीत्र ने जमामीए ।
सुकुलीत्तं हवइ एवं ॥२०॥ पुढीए मनमां वीचार नपजे ते पुढे तेहने कहीए श्राप ॥ मुंजइ मुंजाविकइ । पुचिक मणोगयं कहिऊ सयं ॥ सार वस्तु मीत्रने दीजे मीत्र जो वांबीए जीवारे नीश्वल स्नेह श्रापे ते लीजीए जोग वस्तु । मीत्रथी तो ॥ २१ ॥ दिकइ लिऊइ नचियं । इचिकर ज थिरं पिम्मं ॥ ११२ ॥ कोइने पिए न अपमान दी न गर्व करीए दांनादीक बते गुणे जीए । पोताने ॥
कोवि न श्रवमन्निजइ । नय गव्विक गुणेहिं नि एहि न वीस्मय वा यचरीज चीतमां घणां रत्ने करी जे माटे ए प्र लावीए जगमां कांड अचरीज नथी । थवी जरी बे ॥ २२ ॥
नय विम्हन वहिज्जइ । बहु रयणा जेणिमा पुहवी ॥ २२॥ प्रारंभ वा प्रथम कार्य हल करीए काम मोहोटु पए पढेथी | वो वा थोमो कीजे । आरंभिज्जइ लहु ।
न आपण नत्कृष्टपणु ते की
जीए ।
नय नक्करिसो किज्जइ ।
किज्जइ कज्ज महंत मवि पच्चा ॥ पांमीए मोहोटाइप जेणे करीने
॥२३॥
लन गुरुत्तणं जेए ॥ २३ ॥