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२७ए ए प्रकारे नाव कुलक टवार्थ संपूर्ण ॥
इति नावकुलक समाप्तं ॥
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हवे नपदेसरूप रत्ननखानो नंमार ते समान कुलक लखीइंबीए॥
अथ उपदेशरत्न कोश लिख्यते॥ नपदेसरूप रत्ननो नंमार । नाश पमाभ्यां ने समस्त लोकनां
. दारीद्र जेणे। नवएस रयण कोसं। नासिब नीसेस लोग दोगच्चं॥ उपदेसरूप रत्ननी माला ने कहुं वांदी नमीने वर्तमान शास वा श्रेणी के जेहमां एहएं। नपती श्री वीरजिन प्रते॥१॥ । नवएस रयण मालं। वर्ल नमिकण वीरजिणं ॥२॥ जीवदयाने विषे रमण क इंद्रीयोना समुह जे श्रोतादीने दम | रीइं चालीइं सदा। वी वश राखवी सदाय पण ॥
जीवदयाई रमिऊ। इंदिय वग्गो दमिऊ सयावि॥ सत्य मीतुं मव्युं वचन नीश्वे बो धर्मनु सार वा तत्व एगीपरे नी लीइं अवसर नचीत। श्चे॥२॥
सच्चं चेव चविऊ। धम्मस्स रहस्स मिणमेव॥२॥ ब्रह्मचर्य वा शुध आचार न न संवास वसीजे माता याचारी नीचे नागीजीई। साथे ॥
सील नहु खंमिऊ। नसं वसिऊइ समं कुसीलेहिं॥ जला गुरुनु हीतवचन न नलं श्री जिनेश्वरना मुनिधर्मनो एज
नत्कृष्टो अर्थ ॥३॥ गुरुवयणं नखलिऊ। जश्न ऊर धम्म परमडो॥३॥
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घीइं।