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टनु।
कांइक णा चारजाग ए देवतानु वानखु बांधे एक सासो
सासना धर्म करचाथी ॥१३॥ किंचूणा चन्नागा। सुरा बंधो ई गुसासे ॥१३॥ हवे नवकारफल गणीसलाख ने नपर। तेसठहजार बसेंने समसठ॥
एगुणवीसं लका। तेसही सहस्स दुसय सत्तही॥ |एटला पल्योपमन देवश्रायु। बांधे जीव एक नवकार गणे वाज
सासोसास धर्म सेवेतो ॥१४॥ पलियाई देवा। बंध नवकार नस्सगो ॥१४॥ हवे लोगस्सफल लाख एकसठ पां बसेंने दस पल्योपम देवतान त्रीस हजार।
आयु॥ लकिग सघी पणतीस सहस। दुसय दस पलिअ देवानं बांधे कांइक अधीकु जीव। हवे ए रीते धर्म सेवेतो देवगतीनु
आनखु बांधे पचीस सासोसास वा
एक लोगस्सने कानुसग्गे॥१५॥ बंधई अहिश्र जीवो। पणवीसुसास नस्सगो॥१५॥ हवे जो एज प्रमाणे पापकर्म होय तेज रीते नरकगतीना आयु करवामां तत्पर जे जीव। नो बंध पीण करे ॥
एवं पावई परायाणं। हवे निरयान अस्स बंधोवि॥ इम जांणीने लक्ष्मीवान श्री जिनेश्व धर्ममां नद्यम करवो हे न रे कह्या।
व्य वा जोगजीवो॥ अना सिरि जिण कित्तिश्रमि। धम्ममि नसमं कुणह ए रीते पुन्य तथा पाप कुलक समाप्तः॥ [॥२६॥
इति श्री पुन्यपापकुलक समाप्तं॥
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