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१२५ संबंधी जन।
जाइस। कह पायं कह चलिश्रो तुमंपि कह ओगर्न कहि गमिहीं। माहोमांही पीण नथी जाणतो तो।हे जीव कुटंब कीहांथी ताहारु३१
अन्नुन्नपि न याणह। जीव कुमुबं को तुझ ॥३१॥ अल्पकालमां वीनश्वर ए मनुषनो नव वादलांनां पमल सरी हवं सरीर।
खो ॥ | खण नंगरे सरीरे। मश्रनवे अनपमल सारिने॥ तेहमां सारतो एटलोज मात्र। जे करीस सोजनकारीधर्म तेज ३२
सारं इत्ति मित्तं। जं कीरइ सोहणो धम्मो॥३॥ जन्मतां दुःख जरा वा वय रोग जे कास स्वासादिकनां दुःख हाणी वा बद्धपणानु दुःख। मरण प्राणत्याग लक्षणनां दुःख ॥
जम्म दुखं जरा दुख्। रोगाणी मरणाणिय ॥ अहो इति आर्थय के दुःखनो जीहां कष्ट वा केस पांम ने जंतु || समुह नीचे संसारमा। वा प्राणी ॥३३॥
अहो दरको हु संसारे। जल कीसंति जंतणो ॥३३॥ जीहां सुधी न इंद्रिनां व जीहां सुधी नही जरा वा वृद्धपणा लहाणी थयां होय। रूप राक्षणी घणु व्यापी।
जाव न इंदिहाणी। जाव न जर रकसी परिफुर॥ जीहां सुधी नथी थयो रोग जीहां सुधी नथी मृत्यु समस्त प्र नो प्रचार।
कारे नल्लस्युं ॥३॥ जाव न रोग विश्रारा। जाव न मच्चू समुन्निअ॥३४॥ जेम घर बलवा मांझे थके कुश्रो खोदी पाणी काढी न सके ते अवसरे।
कोइ॥ जह गेहमि पलिते। कूवं खणीचं न सकए कोई॥