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________________ २०० जेम वीष्टाना पुज्य वा ढ क्रमी वा कीमो सुख प्र[॥६॥ गलामा खुल्यो जे। ते माने सदाकाल। - जह विछ पुंज खुत्तो। किमी सुहं मन्नए सयाकालं। तीम वीषयरूप असुचीमां जी ते पण जाणे सुख मूर्ख ॥६१॥ रक्त वा लीन जे। __ तह विसया सुश् रत्तो। जीवोवि मुण सुहं मूढो॥६॥ जेम समुद्र जले करी न पुरा तीम नीश्चे दुःखे करी पुराय श्रा य वा दोहीलो पुराय। जीव।। | मथरहरोव जलहि। तहवि हु दुप्पूरन इमे आया॥ वीषयरूप अांमीस वा मांस नवो नव थाये नही त्रपती॥६॥|| मां ग्रध्र थयो थको। __ विसया मिसंमि गियो। नवे नवे वच्चश् न तत्ति॥६॥ वीषयने वीषये आर्तवंत जे नद्भटरूप आदेमां वीवधि वा ना जीव ते। ना प्रकारमां॥ विसय विसहा जीवा। ननमरूवाइएसु विविहेसु॥ नव सत्त सहश्र दुर्लनं। नथी जाणता गया पीण आपणा जन्म॥३॥ नव सयसहस्स दुलहं। नमुणंति गयपि निजम्मं ६३ चेष्टा करे वा रहे वीषयथी पर मुकी लाजने पण केटलाएक सं| वस थएला। का रहीत ॥ चिति विसय विवसा। मुत्तू लङपि केवि गयसंका॥ नथी गणता केटलाएक म वीषयरूप अंकूश साल्या जीव वा रण प्रते। प्राणी ॥६॥ नगणंति केवि मरणं । विसयं कुस सल्लिया जीवा॥६॥ वीषयरूप वीष थकी जीव। श्री वीतराग कथीत धर्म प्रते हारी
SR No.020562
Book TitlePrakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavchand Jechand Shah
PublisherRavchand Jechand Shah
Publication Year1888
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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