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________________ ११ - - विसया विको निवम । नरविरको तर दुत्तर नवोह। जेम देवीना धीपमा गएला ए नाइ बेनुं द्रष्टांत वीचारवं॥३१॥ जिनरक्षीत तथा जिनपाल। देवी दीव समागय । जान्थ झुअलेण दिघ्तो॥३१॥ जे थती आकरां दुःख। जे वली सुख नत्तम वा श्रेष्ट त्रण लोकमां॥ जं अश् तिकं दुखं। जंच सुहं उत्तमं तिलोअंमि॥ ते आणजे हे नव्य वीषयनी। बद्धी ते दुःख हेतुं ने खय ते सुख हेतु सर्व ॥३॥ तं जाणसु विसयाणं। वुढि कय हेन्रं सव्वं ॥३॥ इंद्रियोना वीषयमा जे आ पमे वे संसाररूप समुद्रमा जीव सक्त वा तीन लेते। वा प्राणी ॥ | इंदिअ विसय पसत्ता। पति संसार सायरे जीवा॥ जेम परवीनी बेदाइ पांखो तेम मनुष पण नलाशील आचार ने हेठो पमे। गुणरूप पांख रहीत ॥३॥ परिकव्व छिन्न पका।सुसील गुण पेहुण विहूणा ॥३३॥ न जाणे जेम चाटतो थको। मोहोटु हामकुं जेम सुनक वा कुतरो॥ । नलहर जहा लिहंतो। मुहल्लिअं अअिंजहा सुगन॥ पोताना सोसे तानुबानी रसी वीसेष चाटतो थको माने सु ख प्रते ॥३॥ सोस तालुअ रसिअं। विलिहंतो मन्नए सुखं॥३४॥ स्त्रीनी कायानो सेवनार न पांमे कांइ पण सुख तीम पुरुष तो वा जोगवनार। पण ॥ महिलाण काय सेवी। नलह किंचिवि सुहं तहा पुरिसो॥ प्रते।
SR No.020562
Book TitlePrakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavchand Jechand Shah
PublisherRavchand Jechand Shah
Publication Year1888
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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