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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org (७६) लिपिपल ३९ वां. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इस लिपिपत में शक संवत्की ११ वीं से १४ वीं शताब्दी के बीच की तामिळ लिपि दर्ज की है. इसको लिपिपत्र ३८ से मिलाकर देखने से पायाजाता है, कि अशोकके लेखोंकी लिपिसे बनी हुई, दक्षिणकी लिपि - योंका कुछ अंश इसमें प्रवेश होनेसे अक्षरोंकी आकृति साथ जुडे हुए स्वर चिन्हों में बहुत कुछ परिवर्तन हुआ है. वर्तमान तामिळ लिपि बनी है. और व्यंजनों के इसी लिपिसे लिपिपत ४० वां. इस लिपिपतमें भिन्न भिन्न लेख और दानपत्रोंसे छांटकर ऐसी संख्या रक्खी गई हैं, जो शब्द और अंक दोनों में लिखी हुई मिली हैं. वर्त्तमान देवनागरी अंकको ( ) में लिखकर उसके आगे अस्ली शब्द, और उसके बाद [ ] में अस्ली अंक रक्खा है. अस्ली शब्दोंका अक्षरान्तरः वितीये [२] ततिये [३]. चोथे [४]. पचमे [५] छठे [६]. सात मे [७]. अठ [८]. - ईशभि: [१०] त्रयोदश [ १०३ ]. पनरस [१० ५ ]. एकुनवी से [१०९] विंशति [२०]. पचविश [ २०५ ]. त्रिश [३०] सप्तपञ्चाशे [५० ७] द्विसप्ततितमे [ ७० २]. सत [ १०० ]. सतानि बे [२०० ]. शतत्रये एकनवत्ये [ ३०० ९० १]. शत चतुष्टये एक विशत्यधिके [४००२०१]. शतानि पंच [५०० ]. शतषट् के एकूनाशीत्यधिके [ ६००७०९] शतेषु नवसु त्वयस्त्रिंशदधिकेषु [ ९३३ ]. सहस्र [ १००० ] सहस्रानि बे [२०००] सहस्रानि त्रिणि [ ३००० ] सहस्रेहि चतुहि [ ४०००] सहस्रानि अठ [ ८००० ]. सहस्रैरष्टाभि: [ ८०००] सहस्राणि सतरि [ ७०००० ]. लिपिपत्र ४९ और ४२ वां. इनमें पहिले देवनागरी लिपिका अंक लिख प्रत्येक अंकके सामने वही अंक भिन्न भिन्न प्राचीन लेख, दानपत्र और सिक्कोंकी छापों से छांटकर पृथक् पृथक् पंक्तियों में रक्खा है. अंतिम ३ पंक्तियों में पंडित भगवानलाल इंद्रजी के प्रसिद्ध किये अनुसार ( १ ) बौद्ध और जैन ग्रन्थों में पाये हुए, अंक बतलानेवाले अक्षर और चिन्ह लिखे हैं ( प्राचीन अंकोंके लिये देखो पृष्ठ ४७-५१). (१) इण्डियन एण्टिक री ( जिल्द ६, पृष्ठ ४४-४५, पंक्ति ७, ८, ९ ) For Private And Personal Use Only
SR No.020558
Book TitlePrachin Lipimala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar Harishchandra Ojha
PublisherGaurishankar Harishchandra Ojha
Publication Year1895
Total Pages199
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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