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(५१)
१२ वीं या १३ वीं शताब्दी तक प्राचीन क्रमसे अक्षर लिखनेका प्रचार रहा, तथापि उन्हीं पुस्तकों से पाया जाता है, कि उस समय केवल "मक्षिका स्थाने मक्षिका " की नांई प्राचीन पुस्तकोंके अनुसार नकल करते थे, परन्तु प्राचीन कमको सर्वथा भूले हुए थे.
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ज्योतिषके ग्रन्थोंकी पथ रचना में बहुत से अंक एकल लानेमें कठिनता रहती है, जिसको दूर करनेके निमित्त ज्योतिषियोंने कितने एक अंकों के लिये निम्नलिखित सांकेतिक शब्द नियत किये:
० = ख, गगन, आकाश, अंबर, अभ्र, वियत्, व्योम, अंतरिक्ष, नभ, शून्य, पूर्ण, रंध्र आदि.
१ = आदि, शशी, इन्दु, विधु, चन्द्र, शीतांशु, सोम, शशाक, सुधांशु, अब्ज, भू, भूमि, क्षिति, धरा, उर्वरा, गो, वसुंधरा, पृथ्वी, क्ष्मा, धरणी, वसुधा, कु, इला आदि.
२ = यम, यमल, अश्विन, नासत्य, दस्र, लोचन, नेत्र, अक्षि, दृष्टि, चक्षु, नयन, ईक्षण, पक्ष, बाहु, कर, कर्ण, कुच, ओष्ट, गुल्फ, जानु, जंघ, द्वय, द्वंद्व, युगल, युग्म, अयन आदि.
३= राम, गुण, लोक, भुवन, काल, अग्नि, वन्हि, पावक, वैश्वानर, दहन, तपन, हुताशन, ज्वलन, शिखी, कृशानु आदि.
४ = वेद, श्रुति, समुद्र, सागर, अब्धि, जलनिधि, अंबुधि, केंद्र, वर्ण, आश्रम, युग, सूर्य, कृत आदि.
५= बाण, शर, सायक, इषु, भूत, पर्व, प्राण, पांडव, अर्थ, महाभूत, तत्व, इन्द्रिय आदि.
६ = रस, अंग, ऋतु, दर्शन, राग, अरि, शास्त्र, तर्क, कारक आदि. ७ = मग, अग, भूभृत्, पर्वत, शैल, अद्रि, गिरि, ऋषि, मुनि, वार, स्वर, धातु, अश्व, तुरग, वाजि आदि.
८ = वसु, अहि, गज, नाग, दंति, दिग्गज, हस्ती, मातंग, कुंजर, द्विप, सर्प, तक्ष, सिद्धि आदि.
९ = नन्द, अंक, निधि, ग्रह, रन्ध्र, द्वार, गो आदि.
१० = अंगुलि, दिशा, आशा, दिकू, पंक्ति, ककुप् आदि.
१३ = विश्वेदेवा.
११ = रुद्र, ईश्वर, हर, ईश, भव, भर्ग, शूली, महादेव, आदि.
१२ = अर्क, राधे, सूर्य, मार्तंड, थुमणि, भानु, दिवाकर, मास, राशि,
आदि.
१४ = मनु, विद्या, इन्द्र, शक्र, लोक, आदि.
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