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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org (४४) गिनाजाता है. उस समयसे आजतक ४६५ वर्ष हुए हैं. गुजरात और दक्षिण में शालिवाहनका संवत् है, जिसके इस समय १५०६, और मालवा तथा दिल्ली आदि में विक्रमादित्यका संवत् चलता है, जिसके १६४१ वर्ष व्यतीत हुए हैं" ( १ ) इससे शक संवत् और इस संवत्का अन्तर कितनेएक महिनों तक ( १५०६ - ४६५ = ) १०४१ आता है. ६- डॉक्टर राजेन्द्रलाल मिलने “ स्मृतितत्वामृत " नामक हस्तलिखित पुस्तक के अन्तमें " ल० सं ५०५ । शाके १५४६ " होना लिखा है ( २ ), जिससे शक संवत् और इस संवत्का अन्तर अबुल फ़ज़लके लिखे अनुसार ही आता है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राजा शिवसिंहदेव के दानपत्र और पंचाङ्ग वगैरह से इस संवत्का प्रारम्भ शक संवत् १०२८ के आस पास और स्मृतितत्वामृत व अबुल फ़ज़लकें लिखे अनुसार शक संवत् १०४१ में आता है. डॉक्टर कीलहार्नने एक लेख और पांच पुस्तकों में लक्ष्मणसेन संवत् के साथ दिये हुए महीने, पक्ष, तिथि, और वार आदिको गणितसे जांचकर देखा, तो मालूम हुआ, कि गत शक संवत् १०२८ मृगशिर शुक्ला ? को इस संवत्का पहिला दिन अर्थात् प्रारम्भ मानकर गणित कियाजावे, तो उन ६ में से ५ तिथियों के वार तो ठीक मिलते हैं (३), परन्तु गत कलियुग संवत् १०४१ कार्तिक शुक्ला १ को इस संवत्का पहिला दिन, और महीने अमान्त मानकर गणित किया, तो छओं तिथियों के वार आमिलते हैं ( ४ ) यदि अबुल फ़ज़लका लिखना सत्य मानाजावे तो, पंचांगों का संवत् बिल्कुल असत्य ठहरता है, और राजा शिवसिंहका दानपत्र जाली मानना पड़ता है, परन्तु उक्त दानपत्रको जाली ठहरानेके लिये कोई प्रमाण नहीं मिला, बरन उसकी तिथिको गणितसे जांचा जावे तो गुरुवार भी आमिलता है ( ५ ). अबुल फ़ज़लने लक्ष्मणसेनका राज केवल ८ वर्ष माना है ( ६ ), परन्तु "" (१) एशियाटिक सोसाइटी बङ्गालका जर्नल (जिल्द ५७, हितह १, पृष्ठ १-२ ). हिनरो सन् १२८६ का लखनऊका कृपा हुआ अकबरनामा ( जिल्द २, पृष्ठ १४ ), (२) नोटिसीज़ आफ संस्कृत मेनुस्क्रिप्ट्स (जिल्द 4, पृष्ठ १३ ).. (३) इण्डियन एण्टिक्क रौ ( जिल्द १९, पृष्ठ ५ ). (जिल्द १८, पृष्ठ ६), "" (8) (५) बुक आफ इण्डियन ईरान (पृष्ठ ७८), इण्डियन एण्टिकेरी (जिल्द १८, पृष्ठ ५-६ ) (६) एशियाटिक सोसाइटी बङ्गालका जर्नल (जिल्द १४, हितह १, पृष्ठ १३० ), For Private And Personal Use Only
SR No.020558
Book TitlePrachin Lipimala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar Harishchandra Ojha
PublisherGaurishankar Harishchandra Ojha
Publication Year1895
Total Pages199
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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