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________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org शुक्ला १ से फाल्गुन कृष्णा अमावास्या ( अमान्त ) तक ३७६ वर्षका रहता है (१). इस संवत्का प्रारम्भ चैत्र शुक्ला १ से, (२) और महीने पूर्णिमान्त हैं. प्राचीन समयमें इस संवत्का प्रचार नेपालसे काठियावाड़ तक रहा था. श्रीहर्ष संवत्- यह संवत् थाणेश्वरके राजा श्रीहर्ष ( हर्षवर्धन या हर्षदेव ) ने चलाया है. अलबेरुनीने लिखा है, कि "मैंने कश्मीरके एक पंचाङ्ग में पढ़ा था, कि हर्षवर्धन विक्रमादित्यसे ६६४ वर्ष पीछे हुआ (३)". - यदि अलबेरुनीके लिखनेका अर्थ ऐसा समझा जावे, कि विक्रम संवत् ६६४ में श्रीहर्ष संवत्का पहिला वर्ष था, तो विक्रम संवत् और श्रीहर्ष संवत्का अन्तर ६६३ (ई० स० ६०६-७) होता है. (१) टामस साहिने गुप्त संवत् १ के मुताबिक ई० स० ७८-७०, जेनरज कनिंगहामने ई. स. १६७-६८, और सर लाईव व लेने ई० स० १९१-८२ होना अनुमान किया था, परन्तु ई० स० १८८४ में फ्लोट साहिबको कुमारगुप्त पहिले के समयका मालव संवत् ४५३ का लेख मिला, जिससे इन विद्वानों का अनुमान पसत्य ठहरा, क्योंकि इसो कुमारगुप्तके दूसरे लेखों में [गुप्त] संवत् ८६,८८, ११३, और १२८ दर्ज हैं (देखो पृष्ठ २६, नोट ४), जो मालव (विक्रम ) सवत् ४६३ के निकट होने चाहिये, परन्तु उक्त विद्वानों के अनुमानके अनुसार ऐसा नहौं होसक्ता. (२) गुजरात वाजोंने इस सवत्का प्रारम्भ पौईसे विक्रम सबके साथ कार्तिक शुक्ला । को मानना शुरू कर दिया हो ऐसा पायाजाता है. वल्लभीके राजा धरसेन चौथ का एक दान पत्र खड़ासे मिला है, जिसमें [वमभौ] सवत् ३३० हितोय मार्गशिर शुक्ला २ लिखा है (इंण्डियन एण्टिक्केरौ जिल्द १५, पृष्ठ ३४०). वल्लभी संवत् ३३. विक्रम संवत् (३३.+३०६ =) ७०६ के मुताबिक होता है. विक्रम सवत् ७०६ में कोई अधिक मास नहीं था, परन्तु ७०५ में अधिक मास आता है, जोकि गणितकी प्रचलित रीतिके अनुसार कार्तिक, और मध्यम मानसे मार्गशीर्व होता है. इसलिये वल्लभी सवत् ( ७०५ -३७६ = ) ३२९ में मार्गशीर्ष अधिक होना चाहिये, परन्तु उक्त दानपत्र में [वल्लभी] संवत् ३३० में मार्गशीर्ष अधिक लिखा रहने से अनुमान होता है, कि गुजरात वालोंने वल्लभी संवत् ३३. के पहिले किसी समय चैत्र शुक्ला १ को वल्लभी संवत्का प्रारम्भ कर ७ महीनोंके बाद फिर कार्तिक शुक्ला १ को दूसरे वल्लभी वत्का प्रारम्भ करदिया होगा, अर्थात् एकही उत्तरी विक्रम संवत्में दो वल्लभी स'वतोंका प्रारम्भ माना होगा, जिससे वल्लभौ संवत् ३२८ के स्थान ३३० होसक्ता है, या फरफार काठियावाड़ में वल्लभी सवत् ८४५ तक नहीं हुआ था. (३) अलवरुनौज इण्डिया-डाक्टर एडवर्ड सेच का किया हुआ अलब स्नोको अरबी किताबका अंग्रेजी भाषान्तर (जिल्द २, पृष्ठ ५), For Private And Personal Use Only
SR No.020558
Book TitlePrachin Lipimala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar Harishchandra Ojha
PublisherGaurishankar Harishchandra Ojha
Publication Year1895
Total Pages199
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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