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कर्मविपाक:
कर्मग्रंथः॥
MARCHIMSHANKAR
सूभगकम्मुदएणं, हेवइ हु जीवो उ सचजणइट्ठो । दूंहगकम्मुदए पुण, दुहओ सो सैयललोयस्स ॥ १४४ ॥ सूसरकम्मुदएणं, सूसरसहो ये होइ इह जीवो। दूसर उदए विसरो, जंपंतो होइ जणवेसो ॥ १४५॥ आएजकम्मउदए, चिट्ठा जीवाण भासणं जं च । तं बहु मन्नइ लोओ, अबहुमयं इयर उदएणं ॥ १४६ ॥ जस्सुदएणं जीवो, लहइ हु कित्तिं जसं च लोगम्मि । तं जसनामं कम्म, अजसुदए लहइ विवरीयं ॥ १४७॥ देहंगावयवाणं, लिंगागिइ जाइ नियमणं जं च । तहिं सुत्तहारसरिसो, निम्माणे होइ हु विवागो ॥ १४८ ॥ उदए जस्स सुरासुरनरवइनिवहोहँ पूईओ होइँ । तं तित्थयरं नामं, तस्स विवागो उ केवलिणो ॥१४९॥ भणियं नामं कम्म, अहुणा गोयं तु सत्तमं भणिमो। तं पि कुलालसमाणं, दुविहं जह होइ तह भणिमो ॥१५०॥ जह इत्थ कुंभकारो, पुढवीए कुणइ एरिसं रूवं । जं लोयाओ पूर्य, पावइ इह पुण्णकलसाई ॥ १५१ ॥ भुंभुलमाई अन्नं, सो चिय पुढवीऍ कुणइ रूवं तु । ज लोयाओ निंद, पावइ अकएवि मजंमि ॥ १५२ ॥ एव कुलालसमाणं, गोयं कम्मं तु होई जीवस्स । उच्चानीयविवागो, जह होइ तहा निसामेह ॥ १५३॥ अधणी बुद्धिविउत्तो, रूवविहूणोवि जस्स उदएणं । लोयंमि लहइ पूर्य, उचागोयं तयं होइ ॥ १५४ ॥
१ "होइ हु" इति । २ "दूभगकम्मुदएणं, दुब्भगओ" इति । ३ “सव्वलोगस्स" इति । ४ "उ" । ५ "विरसो" इति । ६ "अवमन्नइ" इति । ७ "लोए" इति । ८ "य'।९"इत्थ" इति । १. "अधणो" इति पाठः ।।
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