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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुसुमादि का नासिक गुहालेख पुलुमावि का नासिक गुहालेख नासिक (महाराष्ट्र) भाषा-प्राकृत लिपि-ब्राह्मी, वर्ष 22 (142 ई०) सिद्धम्। नवनर-स्वामी वासिठी-पुतो सिरि-पुळुमवि(आ)नपयति गोवधने आमच सिवखदिलय अ( म्हे) वस 10+9 गिप 2 दिव 10+3 धनकट समनेहि यो एथ (पवते ) तिर (बहुम्हि ) न(तिरहुन्हि पतिवसतान भिखुन) 'ध( म )सेतुस (ले )णस पटि-संथरणे (दत) अखय (नीवि)-हेतु एथ गोवधनाहारे दखिणमगे गामो सुदिसणा भिखुहि देवि-लेण-वासीहि (भ्यः) निकायेन भदायनियेहि (प)तिगय दतो। एतस दान-गामस सुदिसन(स) परिवटके एथ गोवधन (हारे) पुवमगे गाम समलिपद ददाम। एत त मह-अइरकेन ओदेन धमसेतुसलेणस पटिसंथरणे अखय-निवि-हेतु गाम सामलिप(द) (भिखुहि देवि)-लेण-(वासिहि) (निका )येन भदायनियेहि पति(ग)यह (ओ)चप( पे )हि। एतस च गामस सामलि( पदस भिखुहल-परिहार) वितराम अपा( वे )स अनोमस अ (लो) णखादक अरठसविनविक सवजात-पारिहारिक च। एतेहि न परिहारेहि परिहरेहि। एत च गाम-समलिपद पर रि हारे च एथ निबधापेहि सु(दिसन) गामस च। सुदिसना( स ) विनिब(ध )कारेहि अणता। 3. ए०३० 8 पृ० 65 For Private And Personal Use Only
SR No.020555
Book TitlePrachin Bharatiya Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwatilal Rajpurohit
PublisherShivalik Prakashan
Publication Year2007
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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