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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वासिष्ठपुत्र पुलुमावि का नासिक 4. दर्शन प्रिय (भला) लगता है, श्रेष्ठ हाथी की शक्ति के समान जिसका मनोरम विक्रम है; विशाल सर्प के फण के समान सुडौल, गोल, बड़ी, लम्बी तथा सुंदर जिसकी भुजाएं हैं, अभयदान के जल में जिसके हाथ निर्भय तथा गीले रहते हैं; माता की अबाध सेवा करने वाला, त्रिवर्ग (ध र्म-अर्थ-काम) के लिए स्थान तथा काल का जिसने सम्यक विभाजन (व्यवस्था) कर दिया है; __ अविशिष्ट होकर जो नागरिकों के सुख दुःख का समान साझीदार हो जाता है; क्षत्रियों के गर्व तथा सम्मान को कुचलने वाला; शक, य (ग्रीक)वन तथा पह्लव को नष्ट करने वाला; धर्मशास्त्र के अनुसार लगान लगाने या वसूल करने वाला; शत्रुओं के अपराध करने पर भी प्राणियों की हिंसा में रुचि नहीं रखने वाला, ब्राह्मण तथा अब्राह्मण का कुल बढ़ाने (उन्नत करने) वाला, क्षहरात वंश को समूल नष्ट करने वाला, सातवाहन कुल के रथ को प्रतिष्ठित करने वाला, सारे सामन्तों के द्वारा जिसके चरणों का अभिवादन हुआ है, चारों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) वर्गों के संकर (मिश्रण) को रोकने वाला, अनेक युद्धों में शत्रुसमूह को पराजित करने वाला; जिसकी श्रेष्ठ नगरी (राजधानी) पर लगी विजयपताका सदा अपराजित रही (क्योंकि) शत्रुओं के आक्रमण अथवा आघात से वह सुरक्षित है, कुल के (पूर्व) पुरुषों से परम्परागत राज शब्द का जिसमें विस्तार हो गया (अथवा जिसके अपने कुल के पूर्वजों से परम्परागत विशाल तथा अनेक राजप्रासाद हैं), जो आगम (शास्त्रीय ज्ञान) का आधार (स्थान) है, जो सज्जनों का आश्रय, जो श्री (लक्ष्मी-कान्ति) का स्थान (पद, आधार) है, जो सदाचार का उत्पत्ति (स्थान) है, जो अद्वितीय नियन्ता, अद्वितीय वीर, अद्वितीय ब्राह्मण; राम, केशव, अर्जुन तथा भीमसेन के समान जिसका पराक्रम है, शुभ अथवा आनन्द के अवसर पर अनेक उत्सव तथा समाज (का प्रदर्शन) करवाने वाला; नाभाग, नहुष, जनमेजय, सगर, ययाति, राम, अम्बरीष (आदि) के समान तेजस्वी, असीम, अक्षय, कल्पनातीत, अद्भुत (है वह) पवन, गरुड, सिद्ध, यक्ष, राक्षस, विद्याधर, भूत, गन्धर्व, (स्वर्गीय) चारण (किन्नर), चन्द्र, सूर्य, नक्षत्र, ग्रह (आदि) के द्वारा जो युद्ध में अगुआ (प्रमुख) देखा 8. 9. For Private And Personal Use Only
SR No.020555
Book TitlePrachin Bharatiya Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwatilal Rajpurohit
PublisherShivalik Prakashan
Publication Year2007
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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