SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 79
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra रुद्रदामा प्रथम का जूनागढ़ शिलालेख 15. 16. 17. www. kobatirth.org 18. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 67 सोना, चांदी, हीरे, मूंगे आदि रत्न - राशि से परिवर्धमान कोश वाला; स्पष्ट (स्फुट), लघु (प्रसाद), मधुर, चित्र (ओज) मनोरम शब्दों तथा कविसमय (अथवा काव्य लक्षणों से समन्वित), उदार (प्रशस्त एवं प्रसाद पूर्ण ) एवं अलंकृत (अलंकारों से मण्डित) गद्य तथा पद्य (काव्य रचना में कुशल); लम्बाई, चौड़ाई (मोटापा), ऊंचाई, ध्वनि, चाल, देह-वर्ण, बल, आत्मशक्ति आदि श्रेष्ठ लक्षणों को व्यक्त करने वाली कमनीय देह से युक्त; स्वयं ( अपनी शक्ति से) महाक्षत्रप नाम (उपाधि) प्राप्तकर्ता ; राजकुमारियों के स्वयंवर में अनेक वरमाला प्राप्तकर्ता; महाक्षत्रप रुद्रदामन् ने सहस्रों वर्ष तक गो-ब्र - ब्राह्मण के हित के लिये, धर्म तथा कीर्ति की वृद्धि के लये लगान, बेगार अथवा भेंट आदि से नगर तथा जनपद के निवासियों को कष्ट न देकर अपने (राजकीय) कोश की अपार धनराशि से अल्पकाल में ही तिगुना दृढ़, चौड़ा तथा लम्बा सेतु (बांध) बनवाकर सारे तटों ( को दृढ़तर बनवाकर) सुदर्शन तालाब को पहले की अपेक्षा अधिक दर्शनीय बना दिया। इस कार्य में महाक्षत्रप (रुद्रदामना के) अमात्य के गुणों से सम्पन्न मतिसचिव (मन्त्रणा देने वाले मन्त्री) तथा कर्मसचिव (मन्त्रणा को कार्य रूप में परिणतकर्ता मन्त्री) ने भी सुदर्शन की विशाल दरार से अनुत्साहित होकर (तडाग के) जीर्णोद्धार को प्रारम्भ करने के लिसे असहमति प्रकट करते हुए विपरीत राय दी ( फलतः) पुनः सेतुबन्ध से निराश प्रजा में हाहाकार हो जाने पर, इस स्थान पर नगर तथा जनपद के निवासियों पर दया (कृपा) करने के लिये राजा के द्वारा सारे आर्त तथा सुराष्ट्र का पालन करने के लिये नियुक्त 19. यथावत् अर्थ, धर्म तथा व्यवहार (न्याय) तथा दर्शन से (प्रजा में) अनुराग बढ़ाते हुए, समर्थ, संयमी, गम्भीर, गर्वहीन, सदाचारी तथा अनुकरणीय पहलव (पार्थियन) कुलैप के पुत्र अमात्य सुविशाख ने For Private And Personal Use Only 20. सुशासन करते हुए अपने स्वामी का धर्म, कीर्ति तथा यश बढ़ाते हुए (यह ) अनुष्ठान किया।
SR No.020555
Book TitlePrachin Bharatiya Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwatilal Rajpurohit
PublisherShivalik Prakashan
Publication Year2007
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy