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कुषाण राजा का तक्षशिला रजतवर्ति लेख
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स्थल-तक्षशिला भाषा-प्राकृत, लिपि-खरोष्ठी, विक्रम वर्ष 136 (79 ई०) स 1 (X) 100 (+) 20 (+) 10 (+) 4 (+) 1 (+) 1 अयस अषडस मसस दिवसे 10 (+) 4 (+) 1 इश दिवसे प्रदिस्तवित भगवतो धतु(ओ) उर(स) केण इंतहिअ-पुत्रण बहलिएण णोअचए णगरे वस्तवेण (1) तेण इमे प्रदिस्तवित भगवतो धतुओ धमर इए तक्षशि( ल ए तणुवए बोसिसत्व गहमि महरजस रजतिरजस देवपुत्रस खुषणस अरोग दक्षिणए सर्वबुधण पुयए प्रचग बुधण पुयए अरह(त)ण पुयए सर्वस
(त्व )ण पुयए मत-पितु पुयए मित्रमच-सञति-स 5. लोहि(त) ण पुयए अत्वणो अरोग दक्षिणए(।) णि (व)ण ए
होतु अव )दे सम-परिचगो (।) अय (Azes II) के 136 वर्ष के आषाढ मास के 15वें दिन-इस दिन भगवान् के देहावशेष प्रतिष्ठित करवाये। औरश (उरशा देश के निवासी) इन्तप्रिय पुत्र बाहलिक ने जो नवजाय (?) नगर का निवासी है। उसने भगवान् का यह देहावशेष तक्षशिला के स्वकीय धर्मराजिका बोधिसत्व-गृह में प्रतिष्ठित किया
महाराज राजातिराज देवपुत्र कुषाण की आरोग्य-दक्षिणा के लिये, 1. एपि) इ0 14. पृ. 295, कार्पस 2/1, पृ० 77
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