________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
36
प्राचीन भारतीय अभिलेख
(ग) ध (') च राजानं वहसतिमितं पादे वंदापयति। नंदराज-नीतं
च का(लि) ग-जिनं संनिवेस. . . अंग-मगध-वसुं च नयति। 13 . . . (क)तु (') जठर-(लखिल-गोपु )राणि सिहराणि
निवेसयति सत-विसिकनं (प)रिहारेहि। अभुतमछरियं च हथी-निवा (स)परिहर....हय-हथि-रतन-(मानिक) पंडराजा.
. . . (मुत-मनि-रतनानि आहरापयति इध सत (सहसानि) 14 ... सिनो वसीकरोति। तेरसमे च वसे सुपवत-विजय-चके
कुमारीपवते अरहते(हि) पखिन-सं( सितेहि कायनिसीदियाय यापूजावकेहि राजभितिनि चिनवतानि वास(TXसि )तानि पूजानुरत उवा( सग-खा)रवेलसिरिना जीवदेह(सयि )का
परिखाता 15. . . सकत-समण सुविहितानं च सव-दिसानं ब (नि) नं (?)
तपसि-इ(सि)न संघियनं अरहतनिसीदिया-समीपे पाभारे
वराकार-समुथापिताहि अनेकयोजनाहिताहि. . . .सिलाहि... 16. चतरे च वेडुरिय-गभे थंभे पतिठापयति पानतरीय-सत-सहसेहि।
मु(खि)य-कल-वोछिनं च चोया ठि)अंग संतिक (-) तुरियं उपादयति। खेम-राजा स वढराजा स भिखुराजा धम-राजा
पसं(तो) सुन( तो) अनुभवा तो) कलानानि 17. ... गुण-विसेस-कुसलो सव-पासंड-पूजको सव-दे( वाय)
तन-सकार-कारको अपतिहत-चक-वाहनबलोचकघरो गुतचको पवतचको राजसिवसु-कुल-विनिश्रितो महाविजयो राजा खारवेलसिरि। अर्हतों को प्रणाम। सब सिद्धों को प्रणाम। चेदी राजवंश की उन्नति (राजवंश को अलंकृत) करने वाले, अनेक शुभ लक्षणों से सम्पन्न, (चारों समुद्र पर्यन्त) सारी पृथवी पर जिसकी गुणकीर्ति फैल गयी है, कलिंग के अधिपति, पिंगल वर्ण की काया से शोभित आर्य इन महाराज, महामेघवाहन श्रीखारखेल ने
For Private And Personal Use Only