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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra युवराजदेव द्वितीय का बिलहरी शिलालेख 17. www. kobatirth.org 19. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 281 समान, ईख के धनुष वाले कामदेव की रति के समान वह ( नोहला) केयूरवर्ष की प्रिया हुई । 38 जैसे मदजल की छटा से हाथी, लघु प्रवाललता से सागर तट, पुष्पलक्ष्मी से वृक्ष तथा विद्युत् से मेघ शोभित होता है तथैव उस देवी के सान्निध्य से उस नृप ने अनुपम शोभा धारण की। 39 उस (नोहला) ने पुण्यप्राप्ति के लिये भगवान् (शिव) का यह मंदिर बनवाया जो उमा के प्रेमपात्र हैं। इस के समुन्नत शिखर पर सूर्य की रश्मियां खिसकती हैं तथा जो उसके यश समूह की यह ठोस आकृति है। 40 आकाश में चलने से क्लान्त सूर्य के अश्व के फेनजल से ये पताकाएं निरंतर गीली हो रहीं हैं। 41 जिस समुन्नत विमल सारवान् मंदिर के विशाल (आमलक) कंगूरों पर वर्षाकाल में आश्लिष्ट होती (विश्राम करती) नूतन मेघमाला कपोत-पंक्ति के समान लग रही है। 42 18. मधुमति के स्वामी एक साधु पवन शिव थे, उनके पश्चात् शब्द शिव हुए तथा मनस्वी ईश्वरशिव ने भी उसके शिष्यत्व को पवित्र किया। 43 उस तपोनिधि को उस मेधाविनि ( सुसंस्कृत रानी) ने उसकी विद्वत्ता के कारण निपानीय तथा अम्बिपाटक गांव दान में दिये। 44 तथा स्मरारि (शिवजी) के निमित्त उसने धङ्गटंपाटक, पोण्डी, नागबल, खैलपाटक, वीडा, सज्जाहली एवं गोष्ठपाली (ग्राम दान में) दिये। 45 राजा युवराजदेव (प्रथम) तथा उस (नोहला) से श्री लक्ष्मणराज (द्वितीय) उत्पन्न हुआ जिसने सूर्य के समान तेजस्वी उन्नति प्राप्त की। जिसके चरणों की कान्ति को लक्ष्मी ने परिवृद्ध किया तथा नृपों के समुन्नत सिरों से ( पर्वतों के समुन्नत शिखरों से) सेवित हुए। तथा जिसने अपने कमनीय तथा सुंदर (अथवा कमनीयता, सौंदर्य आदि) अभिनव गुणों से कामदेव पर विजय प्राप्त कर ली। 46 For Private And Personal Use Only युद्ध में दृढ़ता से आघात कर तलवार की धार से विदारित शत्रु-गज के कुम्भ (मस्तक) से उद्भूत मुक्तासमूह से पृथ्वी पर बिखेर कर वीरलक्ष्मी को चतुष्क (चौलड़ा हार) पहिना कर (उसे) अपनी कीर्ति वधू बना लिया। 47
SR No.020555
Book TitlePrachin Bharatiya Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwatilal Rajpurohit
PublisherShivalik Prakashan
Publication Year2007
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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