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3. शपुरपरमेश्वर कलाइये वंशोद्भवज्योतिस्सन्ततिरावार्य - पुत्र श्री देउकः । तस्यैव भा -
शंकरगण प्रथम का सागर - लेख '
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सागर - ( म०प्र०)
भाषा-संस्कृत
लिपि - ब्रह्मी
समय-सातवीं शती
सिद्धिः । ओं नमः शिवाय । स्वस्ति । परमभट्टारकमहाराजाधिराजपरमेश्वर श्रीवामराजदेवपादानु
ध्यातपरमभट्टारकमहाराजाधिराजपरमेश्वर श्रीशंकरगणदेव प्रवर्द्धमानविजयराज्ये क
र्या लोणियवंशे प्रसूता राज्ञी श्रीकृष्णादेवी या चैतो मातापितृपुण्ये क्षितितले कीर्तिं प्रख्या
पयति । तव लोका अमला इति ।
सिद्धि हो । शिवजी को प्रणाम, कल्याण हो । परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर श्रीवामराजदेव के चरणों के अनुसर्ता
परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर श्रीशङ्करगणदेव के उन्नतिशील एवं विजयी राज्य में
5, पृ० 174
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