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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदित्यसेन का अफसड शिलालेख 191 11. जो मोखरि के युद्धों में उद्धत 9. हूणों की सेना के चौकड़ी भरते विशाल हाथियों के समूह को विनष्ट करते हुए मूर्च्छित हो गया जिसका वरण करते हुए देवाङ्गनाओं के 'यह मेरा है' कहते हुए कर-कमल के सुख-स्पर्श करने से वह जाग गया। 11 प्रदान किये हुए अग्रहारों के ब्राह्मणों की विविध आभूषणों एवं यौवन से अलंकृत 10. सौ कन्याओं का जिस नृप ने विवाह किया। 12 वीरों में अगुआ उसका पुत्र श्रीमहासेनगुप्त हुआ जिसने सारे वीर समूहों में मूर्धन्य वीरता प्राप्त की। 13 सुदृढ़ कवच से युद्ध में विजय प्रशंसा के शब्दों से शोभित जो श्रीमान् अब भी शिवजी कुन्द तथा कुमुद से अनुगत (युक्त) हार से शोभित है। लौहित्य (ब्रह्मपुत्र) की तटवर्ती शीतल भूमि पर पुष्पित नागवृक्ष (नागलता, पान की बेल) की छाया में देव तथा सिद्धों के जोड़े प्रचुर यशोगान करते हैं। 14 उस वसुदेव 12. के समान रूप से लक्ष्मी के सेवन की शोभा से गौरवान्ति दोनों चरण वाले माधव के समान शौर्य में ही आनन्द प्राप्त करने वाला श्रीमाधवगुप्त (पुत्र) हुआ। 15 रण में प्रशंसाप्राप्त वीरों में और स्मरणीय जनों में अग्रणी था तथा वह सुजनता का विधान, अर्थ का संघात तथा मूर्धन्य त्यागियों में श्रेष्ठ था। लक्ष्मी, सत्य तथा सरस्वती का वह कुलगृह तथा धर्म का दृढ़ सेतु था। अपने सद्गुणों के कारण भूतल पर उस जैसा अन्य पूज्य नहीं था। 16 विष्णु (माधव) के समान वह भी अपनी हथेली (करतल) से चक्र धारण करता (चक्र चिन्ह अथवा चक्रवर्तीत्व से युक्त) है, उसका धनुष भी शाङ्ग (सींग का बना हुआ) है, 14. शत्रुओं के विनाश तथा मित्रों को सुखी करने में उसकी खड्ग भी नन्दक For Private And Personal Use Only
SR No.020555
Book TitlePrachin Bharatiya Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwatilal Rajpurohit
PublisherShivalik Prakashan
Publication Year2007
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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