________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
बाउक का जोधपुर शिलालेख
183 हरिचन्द्र ब्राह्मण तथा उनकी क्षत्रिय पत्नी भद्रा से जो पुत्र उत्पन्न हुए वे प्रतिहार कहलाये। 5 रोहिल उपाधिधारी ब्राह्मण हरिचन्द्र शास्त्र एवं अर्थ(शास्त्र) में पारंगत हुआ जो प्रजापति के समान गुरु था। 6
उन श्रीहरिचन्द्र ने ब्राह्मणकन्या से विवाह किया। (उसकी) 5. दूसरी पत्नी भद्रा थी जो क्षत्रिया थी एवं महान् वंश तथा तदनुरूप गुण से
युक्त थी। जो ब्राह्मणी से ब्राह्मण उत्पन्न हुए वे प्रतिहार कहलाये तथा रानी भद्रा ने जिन्हें उत्पन्न किया वे मधुपायी (मदिरा पीने वाले) हुए। 8 उसके पृथ्वी को धारण करने में सक्षम चार पुत्र हुए। श्रीमान् भोगभट, कक्क, रजिल्ल तथा दद्द। 7 इन्होंने अपने भुजबल से अर्जित इस माण्डव्यपुर (आधुनिक मण्डोर) के दुर्ग में शत्रुओं का भयकारी समुन्नत प्राकार बनवाया। 10
इनमें रज्जिल से 7. श्रीमान् नरभट पुत्र उत्पन्न हुआ। विक्रम के कारण जिसका दूसरा नाम
पेल्लापेल्ली हो गया। 11 उस नरभट से श्रीमान् नागभट्ट पुत्र उत्पन्न हुआ जिसकी स्थिर तथा विशाल राजधानी मेडन्तकपुर (मेड़ताँ) थी। 12 तब रानी श्री जज्जिका देवी से महान् गुणशाली शत्रु-विनाशक तात तथा भोज नामक दो सोदर पुत्र उत्पन्न हुए। 13 उस तात ने लौकिक जीवन को विद्युत् के समान चञ्चल समझकर, राज्य अपने छोटे भाई भोज को दे दिया। 14 स्वयं तात, शुद्ध धर्म का आचरण करते हुए, नदी-निर्झर से शोभित माण्डवी के पवित्र आश्रम में रहने लगा। 15 उसका पुत्र श्रीयशोवर्धन हुआ जिसकी पौरुष विख्यात था तथा जिसने
For Private And Personal Use Only