SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 164
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 168 प्राचीन भारतीय अभिलेख पर दया करने वाला, परमभट्टारक महाराजाधिराज श्रीहर्ष अहिच्छत्र (बरेली जिले का रामनगर) भुक्ति (प्रान्त) में बङ्गदीय विषय (जिले) का पश्चिम पथक (परगना) से सम्बद्ध मर्कट सागर में आये हुए महासामन्त, महाराजा, (अथवा महाराज के) दुःसाध्य (डाकू पकड़ना आदि) कर्म करने वाले, प्रमाता (भूमि नापने वाले, पटवारी), राजस्थानीय (राजा के प्रतिनिधि अधिकारी), कुमारामात्य, (राज्यपाल), विषयपति (जिलाधीश), भट (नियत तथा वैतनिक सैनिक), चाट (अनियत तथा अवैतनिक सैनिक), सेवक आदि को तथा जनपद (राज्य) के निवासी को आदेश देता है-ज्ञात (ज़ाहिर) हो, 9. जैसा कि यह उपर्युक्त ग्राम अपनी सीमा पर्यन्त ग्राम (क्षेत्र) सहित, राजा को उपलब्ध होने वाली आय के अधिकार सहित, सारे राजकीय करों से मुक्त, राज्य से स्वतंत्र, पुत्र-पौत्र का अनुसरण कर सूर्य-चन्द्र-पृथ्वी के (स्थिति) काल पर्यन्त सारे अधिकारों सहित मैंने (अपने) आदरणीय पिता परमभट्टारक महाराजाधिराज श्री प्रभाकरवर्धनदेव, माता भट्टारिका महादेवी महिषी श्रीयशोमती देवी एवं अग्रज परमभट्टारक महाराजाधिराज श्री राज्यवर्धन देव के पुण्य तथा यश की अभिवृद्धि के लिये भरद्वाज गोत्र के वेदों में पारंगत सब्रह्मचारी (सहपाठी) भट्ट बालचन्द्र एवं भद्रस्वामी को दान-धर्म में अग्रहार रूप से सम्पन्न जानकर (इसे) आपको मानना चाहिये। ग्रामवासी भी ध्यान से (यह) आदेश सुनकर यथोचित हिसाब कर (आवश्यक), (षष्ठ) भाग, चूंगी, लगान (के रूप में) स्वर्ण आदि धन इन्हीं को प्रदान करें तथा यह भी कि इन्हीं की सेवा-सुश्रूषा 13. करनी चाहिये। हमारे इस (प्रवृत्त) दान से युक्त उदार कुलक्रम का आगमी अन्य (जन) भी अनुमोदन करें। बिजली तथा जल के बुदबुदे के समान चञ्चल लक्ष्मी का फल या तो दान में (निहित) है अथवा परकीर्ति के पालन में। 2 14. मन, वाणी तथा कर्म से प्राणियों (अन्य) का हित करना चाहिये। हर्ष ने इस धर्मार्जन को ही सर्वश्रेष्ठ बताया है। 3 2. For Private And Personal Use Only
SR No.020555
Book TitlePrachin Bharatiya Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwatilal Rajpurohit
PublisherShivalik Prakashan
Publication Year2007
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy