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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७८ श्री महावीर जिन पंचकल्याणक पूजा अति उदार अरिहंतनु, अर्द्ध वस्त्रनुं दान ॥ वस्त्र पात्रमा सूचवे, मूर्छा निज संतान ॥ २॥ अर्द्ध कंटक वलगी पडयुं, जिन रहरिदृष्टे जोय ॥ केइक ममताथी कहे, किहां पडयुं इम कोय ॥ ३ ॥ वस्त्र पात्र निज संतति, दुर्लभ मुलभ निहाल ।। कंटक ३पट लगने थशे, शासन कंटक जाल ॥ ४ ॥ निलोभी प्रभु नव लिये, ते वाडव लइ जाय ॥ वर्षाधिक इम वीरजी, ५चीवर धर कहेवाय ॥ ५ ॥ साढा बार वरश लगे, सहता परिषह घोर ॥ घोर अभिग्रह धारता, दळवा कर्म कठोर ॥६॥ ॥ दाल त्रीजी ॥ राग बरवो ॥ ताल केरबो॥ ॥ मजा देते है क्या यार तेरे बाल धुंधर वाले ॥ ए देशी ।। धन धन वर्द्धमान वडवीर, विचरे उर्वीतल उपगारी ॥ सुर नर तिरि उपसर्ग सुधीर, सम्यग सहता समता धारी ॥ए आंकणी ॥ शूलपाणिने कौशिक व्याल, गुण हीण गौशालो गोवाल । व्यंतरी कटपूतना विकराल, करे परिषह प्रभुने दुखकारी धन० ॥१॥ कपटी कुटिल हृदयनो क्रूर, संतापे बहु संगम सुर ॥ प्रभुजी पाम्या दुख भरपूर, रह्या षट मासी निराहारी धन २ १ शिष्य परंपरा. २ सिंहावलोकनथी.३ वस्त्र. ४ ब्राह्मण ५ वस्त्र. ६ पृथ्वीतल. ७ चंडकोशियो नाग ४ब्राह्मण For Private And Personal Use Only
SR No.020554
Book TitlePooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyasinhsuri
PublisherHiralal Bhagubhai Shah
Publication Year1953
Total Pages145
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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