SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . श्री ब्रह्मचर्य व्रत पूजा विषय विरागी परस्त्री निवारी, निज नारी सतोष स्वीकारी ॥ निर्मल० ॥ १आगारी पण शील गुण धारी, कल्प्यो २अणगारी अनुकारी ॥ निर्मल० ॥ ४ ॥ हितकर गुण नायक ३गुरु थ्हारी, ५निरपवाद ए व्रत निरधारी ॥ निर्मल०॥ . सेवा संतत शिव सुखकारी, जल्पे जिन माणक गणधारी ॥ निर्मल ब्रह्म ॥५॥ । काव्यं ॥ द्रुतविलंबितं वृत्तं ॥ वृजिनविघ्नविपत्तिविदारणं, सुकृतकीर्तिकलापसुकारणं ॥ दिदिवि दिव्यमहोदयदायक, प्रणिदधे किल शीलमहं सदा ॥१॥ ॥ मंत्रः ॥ भो ही श्री परमपूरुषाय, परमेश्वराय, जन्मजरामृत्युनिवारणाय, निर्मलब्रह्मचर्यदायकाय, श्रीमते जिनेंद्राय, नैवेद्यं यजामहे स्वाहा ॥ ॥ अथ गीतं ॥राग बिहाग ॥ त्रिताल ॥ ॥ नगीनारे नेह नजर करी आज ॥ ए दशी ॥ उगारोरे अरिहा आवी आप ॥ ए आंकणी॥ पूरण गुण परमातम प्यारा, पावन पूर्ण प्रताप ॥उगारोरे०॥ १ गृहस्थ. २ मुनिजेवो. ३ म्होटु. ४ सुंदर. ५ अपवाद रहित अर्थात् एकांत. ६ निरंतर. For Private And Personal Use Only
SR No.020554
Book TitlePooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyasinhsuri
PublisherHiralal Bhagubhai Shah
Publication Year1953
Total Pages145
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy