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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री ब्रह्मचर्य व्रत पूजा. निश्चय ने व्यवहारथी, ब्रह्मचर्य अवधार । निश्चय निज गुण रमणता, पर परिणति परिहार ॥२॥ नारी संग निवारिने, वारी विषय विकार ॥ धारी नव विध गुप्तिने, शील साधन व्यवहार ॥३॥ ॥ ढाल ॥ ताल केरबो॥ ॥ हमे दम देके सोतन घर जामा ॥ ए देशी ॥ निर्मल ब्रह्म रचरो नरनारी, चरो नरनारी चरो नरनारी ।। निर्मल ब्रह्म चरो नरनारी ॥ ए आंकणी वस्तु विचार विवेक वधारी, श्रद्धा संवेग शुद्ध समारी॥ निर्मल । पर ममता परिणति परिहारी, धैर्यथी निजगुण स्थिरता धारी ।। निर्मल ॥१॥ अखिल ३रमण चेष्टा अपहारी, विषमायुध संकल्प विसारी ॥ निर्मल० ॥ ५अतिक्रम आदि दोष विदारी, शम दम श्रमण धरम संभारी निर्मल० ॥२॥ ब्रह्म चरेजे ते ब्रह्मचारी सुब्राह्मण सुश्रमण अणगारी निर्मल०॥ सुसाघु ऋषि मुनि मनोहारी, संयत भिक्षु तेहज. भारी॥ निर्मल० ॥३॥ १ आचरो.२ सर्व. ३ काम-अथवा रति (मैथुन) ४ काम. ५ अतिक्रम व्यतिक्रम अतिचार अनाचार. For Private And Personal Use Only
SR No.020554
Book TitlePooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyasinhsuri
PublisherHiralal Bhagubhai Shah
Publication Year1953
Total Pages145
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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