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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री ब्रह्मचर्य व्रत पूजा. निग्रह जस होवे नही, अनिग्रह११ ते थिर थोम ॥७॥ कलहतणा कारण थकी, विग्रह१२ एह वदाय ॥ घात करे गुण रजातनो, नाम विघात१३ गणाय ॥८॥ जेथी गुण विराधना, विभंग१४ वदिये तेह ॥ विषय प्रवृत्ति विकारनो, ३आश्रय विभ्रम१५ एह ॥९॥ अधर्म१६ ४अचरण रूपथी, अशीलता१७ पण एम ॥ प्राम धर्म तप्ति१८ गणो, शब्दादिक पर प्रेम ॥ १० ॥ परत लीला रमवा थकी, रति१९ अमिधा पण तास ॥ राग अनुभव रूपथी, राग२० नाम दृढ पास ॥११॥ ॥ढाल ॥ ॥ जोई जोईने दिलदार, चढतो प्यारनो खुमार ॥ ए देशी। पूजो पूजोने नरनार, जुगते जिनवर जगदाधार ।। वारो विषमायुध विकार, सत्वर तरशो आ संसार । समजो काम भोग सह मार, मन्मथ अथवा मृत्युकाल ॥ माटे काम भोठा मार, २१ विपदा कारी ते विदारो॥ वारो विषमायुध विकार, सत्वर तरशो आ संसार ॥पूजो०॥१॥ विगते वैर२२ रहस्य२३ विचार, वैर निमित्त रहोब्यापार॥ १०गोप्यं गुह्य२४ बहुल गमार, माने ते बहुमान२५ निवारो। वारो० ॥ पूजो० ॥२॥ १ प्रवृत्ति वारवा रोध अथवा निषेध. २ समूह. ३ स्थान ४ अचारित्ररूपथी. ५ मैथुन. ६ काम ७ जल्दी ८ काम ९ अकांत कृत्य. १० छार्नु राखवा योग्य For Private And Personal Use Only
SR No.020554
Book TitlePooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyasinhsuri
PublisherHiralal Bhagubhai Shah
Publication Year1953
Total Pages145
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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