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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री ब्रह्मचर्य व्रत पूजा. जिन माणक गणधर इम जल्पे, दशमा अंग मझार ॥ मोक्ष मार्ग छे ब्रह्म मनोहर, नित पालो नरनार ॥ ब्रह्म छे सर्व धर्ममां सार ॥ सर्व० ॥५॥ ॥ काव्यं ।। द्रुतविलंबितं वृतं ॥ वृजिनविघ्नविपत्तिविदारणं, सुकृतकीर्तिकलापसुकारणं । दिदिवि दिव्यमहोदयदायक, प्रणिदधे किल शीलमहं सदा ॥१॥ ॥मंत्रः॥ ओ ही श्री परम पुरुषाय, परमेश्वराय, जन्मजरामृत्युनिवारणाय, निर्मलब्रह्मचर्यदायकाय श्रीमते जिनेंद्राय, जलं यजामहे स्वाहा ॥ ॥ अथ गीतं ॥ आंगणीयां आज सुहावो राज वीरवंशी शिरताज, ए देशी॥ ओलगडी आज स्वीकारो राज, २जितकाशी शिरताज । सेवकनां काज सुधारो राज, जितकाशी शिरताज ॥ , ओलगडी० ॥ ए आंकणी।। मैथुन संज्ञामां हुँ माच्यो, राच्यो जोइ पर रूप ॥ समज्यो नही जिन मारग साचो, संबर शुद्ध स्वरूप । ३निविड अज्ञान निवारो राज जित०॥ ओलगडी० ॥१॥ तृष्णा तीव्र विषयनी टालो, वारो विरुद्ध विचार ॥ वैरागे मुज मनटुं वालो, आलो ब्रह्म उदार ॥ बिषम शर वैरी विदारो राज ॥ जित० ॥ ओलगडी० ॥२॥ १ विनति. २ जयवान्. ३ आकरु. ४ काग, For Private And Personal Use Only
SR No.020554
Book TitlePooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyasinhsuri
PublisherHiralal Bhagubhai Shah
Publication Year1953
Total Pages145
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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