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॥ अथ श्रीब्रह्मचर्यव्रतपूजाध्यापन विधिः ॥
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सर्व वस्तु आठ आठ लाविए, पहेली पूजामां जल कलश लेइने उभा रहेनुं, पछी पहेली पूजानी बे ढालो कही, काव्य मंत्र भणी, प्रभुने न्वहण करिये, पछी अंगलुहणुं करी गीत भणवु पछी केशर चंदननी कचोली लेवी ने बीजी पूजा भणाववी. ए रीते आठे पूजाओ भणाविये. विशेषमां एटलं के, त्रीजीमां फुल लेवां, चोथीमां धूप लेवो पांचमीमां दीवा लेवा, छहीमां अक्षत चोखा लेवा, सातमीमां नैवेद्य लेवं, आठमीमां फल लेवां, पूजाओ भणाव्या पछी आरती मंगल दीवो करवो.
॥ इति श्री ब्रह्मचर्य व्रत पूजाध्यापन संक्षेप विधिः ॥
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॥ आ पूजामां आवेल काव्यनो भावार्थ: ।।
पाप, विघ्न, अने विपदाने छेदनार, पुण्य अने कीर्तिना समूहनुं सुंदर कारण, तथा स्वर्ग, अने दिव्य मोक्षने आपनार एवा शीलने (ब्रह्मचर्यने) हुं हमेशां ध्याउ छु. ॥
१ ॥
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