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श्री स्नात्रपूजा.
रहायन षट शर नंद निशाकर, (१९५६) अखातीज २भृगुवारजी॥ जिनवर भक्ते गाया जुक्ते, जन्म महोत्सव सारजी ॥६॥ थया अनंता जिन अरिहंता, थासे तेम अनंताजी ॥ वंदू ३संप्रति जिनपति विंशति, विहरमान जयवंताजी ॥ मंगल कारण ए साधारण, कलश भाविक जे गावेजी ।। लक्ष्मी लीला रंग रसीला, केवल माणक पावेजी ॥७॥
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॥ इति वाचनाचार्य श्रीविजयमाणिक्यसिंह
सूरिकृत श्रीस्नात्रपूजा संपूर्णा
१ वर्ष. २ शुक्रवार. ३ वर्तमान. ४ वीस.
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