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श्री मात्रपूजा.
(गाथा) ॥ आर्या ॥ गंधा इड्डिय महुयर, मणहर झंकार सद्द संगीया ॥ जिनचलणोवरि मुक्का, हरउ तुम्ह कुसुमांजलि दुरियं ॥ (एम कहीने कुसुमांजलि चढाववी.)
॥ इति कुसुमांजलयः॥
॥दोहो॥ सकल मुणंद जिणंदना, प्रेमे प्रणमी पाय ॥ कल्याणक विधि वरण, भक्ति भाव चित्त लाय ॥१॥
॥ ढाल॥ छंद चोपाइया ॥ समकित गुणशाली संजम पाली, आराधी वीसथान ॥ भव तीजे साधि सरस समाधि, करुणा भाव निधान ।। निर्मल परिणाम अनुभव जामे, बांधि जिनपद नाम ॥ भव एक लहीने त्यांथि चवीने, पंदर क्षेत्र सुठाम ॥१॥ वर मध्यम खंडे तेज प्रचंडे, राज वंश कुल धाम ।। नृपनी पटराणी गुणनी खाणी, तास कुखे अभिराम ॥ उपजे जिनराया जग सुख दाया, जग माणक जग स्वाम ॥ दुख दोहग नाशे ज्योत प्रकाशे, त्रिभुवनमा उद्दाम ॥२॥
॥ हरिगीत छंद ।। जिनराज जग शिरताज उपजे जननी उदरमा जदा, सवि जीव हर्ष अतीव पामे नारकी पण सुख तदा ॥ तिण रात जिनवर मात सुंदर शयन मंदिर सेजमां, दश चार सुपनां सार निरखे निंद सुखभर मोजमां १
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