SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - श्री वास्तुक पूजा ॥मत्रः॥ औं ही श्री परमपूरुषाय, परमेश्वराय, जन्म जरामृत्युनिवारणाय, श्रीमते शांतिजिनेंद्राय जलं० चंदनं० पुष्पं० धूपं० दीपं० अक्षत नैवेद्य० फलं० यजामहे स्वाहा ॥ इति प्रथमपूजा संपूर्णा ॥ ॥ अथ द्वितीय पूजा प्रारंभः ।। ॥ दोहो ॥ सूता सुखभर सेजमां, आनंदे में आज ।। भाल्यां चौद सुपन भला, ते सुणजो शिरताज ॥१॥ ॥ ढाल ॥ राग माढ ॥ ॥ भावथी नित्य भजिये वीर भदंत ॥ ए देशी ॥ सुपन में आज लह्यां श्रीकार, निसुणो प्रिय प्राणधार ॥ सुपन में आज लह्यां श्रीकार ॥ ए आंकणी ॥ १आद्य सुपनमा दीठो उज्वल, २दंताबल ३चउदंत ॥ उन्नत ककुद तथा अति उत्तम, वृषभ वीजे बलवंत, ५मृगारी त्रीजा सुपन मझार ॥ सुपन० ॥ निसुणो० ॥१॥ चोथे लक्ष्मीदेवी इंचारु, ज्योति झाक झमाल । पंचम सुपने सुरभि पावन मंजुल फूलनी माल, ९सुधाकर छठे सुपने सार । सुपन० ।। निसुणो० ॥२॥ सातमे सुपने उगतो सूरज, आठमे ध्वज १०उत्तंग ॥ निरुपम कलश रूपानो नवमे, पन सरोवर चंग ॥ सुपन दशमे दीठं सुखकार ।। सुपन० ॥ निसुणो० ॥३॥ १ प्रथम.२ हाथी. ३चार दांतवालो. ४ उंचा स्कंधवाला ५सिंह.६सुंदर.७सुगंध युक्त. ८ सूदर. ९ चंद्र. १० उंचो. For Private And Personal Use Only
SR No.020554
Book TitlePooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyasinhsuri
PublisherHiralal Bhagubhai Shah
Publication Year1953
Total Pages145
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy