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श्री वातुक पूजा जंबू भरत कुरु देशे जाणो, पुर हस्तिना पुर प्रधान ।। राज्य करे त्यां रूडी रीते, विश्वसेन नामे राजान ॥
गावो० ॥१॥ तस राणी अचिरा गुण खाणो, रूपे इंद्राणी उपमान ॥ सुंदर शयन भवनमां सूती, १प्रमीला लेती अल्प प्रमाण
गावो० ॥ २॥ श्चारु सर्वास्थथी चविया, भाद्र वदी सातम भगवान ॥ आवी तास उदर अवतरिया, सह गत मतिश्रुत अवधि ज्ञान
गावो० ॥ ३ ॥ चौद सुपन तव देखे चतुरा, निरुपम सुख कल्याण निदान।। उठी निज ५शय्याथी उतरी, हर्षित पुलकित हर्ष ६अमान
गावो० ॥ ४ ॥ प्रियतम पासे आवी प्रीते, वदती कोमल मधुरी वाण ॥ भूपति माणक आगल भाखे, मनहर चौदे स्वप्न महान
गावो० ॥५॥ ॥ काव्यं ॥ गीतिवृत्तं ॥ कांत कांचनकांति, भव्यनिशांतं ध्वस्तभवभ्रांति ॥ शांतं भुविकृतशांति, स्तुवे नितांत जिनेश्वरं शांति ॥१॥
१ निद्रा. २ सुंदर. ३ भादरवो. ४ साथे रह्यां छे. ५ पलंग. ६ घणो. ७ पति. ८ राजाओने वीशे रत्न समान. (विश्वसेन.)
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