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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९० श्री महावीर जिन पंचकल्याणक पूजा आपो अंतरजामी हो जिनजी ॥ लागी० ॥ तुं०॥४॥ ॥ काव्यं ॥ शार्दूलविक्रीडितं वृत्तं ॥ गर्भस्थोऽपिच यः स्तुतः शतमखैर्जातस्तु तीवादरा, तीर्थांभोभृतभूरिरत्नकलशैभर्माचले मज्जितः ॥ दीक्षाकेवलमोक्षपर्वसु महाघस्रेषु संपूजितो, भव्यानां विदधातु सोऽतिमजिनो भद्रावली सर्वदा ॥ १ ॥ ॥ मंत्रः ॥ ओ ही श्री परमपूरुषाय, परमेश्वराय, जन्मजरामृत्युनिवारणाय, श्रीमते महावीरजिनेंद्राय, पारगातय जलं० चंदनं० पुष्पं० धूपं० दीपं० अक्षतं० नैवेद्यं० फलं यजामहे स्वाहा ॥ ॥ इति पंचम निर्वाणकल्याणकपूजा संपूर्णा ॥ ॥ अथ कलश ॥ राग धन्याश्री ॥ ॥ छेला न दो मुझे गाली में नाजो पाली ॥ ए देशी ॥ चोवीशमो जिनरायो, में आजे गायो ।। त्रिभुवन केरो रतायोरे ।।में आजे गायो।।चोवोलाए आंकणी॥ रज्ञात कुलोदधि जैवातृक जिन, त्रिशला देवीनो जायोरे। में परम धरम ध्वर ज्ञान प्रकाशक पुण्य ५महोदय पायोरे ॥ ॥में० ॥ चोवीशमो० ॥१॥ परमेष्ठि अर्हत् नाथ सर्वज्ञ, पारगताय नमायोरे ॥ में ॥ . १ तात अथवा रक्षक. २ सिद्धार्थ राजाना कुलरुप समुद्रमां. ३ चंद्र. ४ नाथ अथवा सुंदर. ५ म्होटो उदय अथवा मोक्ष. For Private And Personal Use Only
SR No.020554
Book TitlePooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyasinhsuri
PublisherHiralal Bhagubhai Shah
Publication Year1953
Total Pages145
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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