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८२ श्री महावीर जिन पंचकल्याणक पूजा शाखी-शोभित रत्न सिंहासने, बेठा श्री जिनचंद ।।
पद पंकज प्रेमे करी, सेवे सुर नर इंद ।।। मधुर स्वरे वर मालकोश रागमां अमृत देशना आपी रह्यो,
आपी रह्यो सुप्रलापी रह्यो । जिनराज० ॥२॥ शाखी-स्यादवाद रस कपिका, नय गम भंग निधान ॥
वाणी योजन गामिनी, वरशी श्री भगवान ॥ गणधर पदवी साथ गुण रसेवधि, संघ चतुर्विध स्थापी रह्यो,
स्थापी रह्यो सुप्रलापी रह्यो । जिनराज० ॥ ३ ॥ शाखी-ज्ञान महोत्सव सुर करे, वरत्यो जय जयकार ।।
देवछंद विराजता, जिनवर जगदाधार ॥ सूरि माणक महावीर पद सेवतां, समकित बीज शुभ २वापी रह्या, वापी रह्या भव ३मापी रह्यो । जिनराज बर्द्धमान०॥४॥
॥ काव्यं ॥ शार्दूलविक्रीडितं वृत्तं ॥ गर्भस्थोपिऽच यः वस्तुतः शतमखैर्जातस्तु तीवादरा, तीर्थी भोभृतभूरिरत्नकलशैर्भर्माचले मन्जितः ।। दीक्षाकेवलमोक्षपर्वसु महाघस्रेषु संपूजितो, भव्यानां विदधातु सोऽतिमजिनो भद्रावली सर्वदा ॥१॥ ॥ मंत्रः ॥ ओ ह्री श्री परमपूरुषाय, परमेश्वराय, जन्मजरामृत्युनिवारणाय, श्रीमते महावीरजिनेंद्राय, १ भंडार. २ वावी रह्यो छे. ३ माप करी रह्यो छे.
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