________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्री महावीर जिन पंचकल्याणक पूजा ८१ नयरी अपापा आविया, वन महसेन विशाल ।। समवसरण सुर वर रचे, त्रण गढ झाकझमाल ॥३॥ दरेक गढ चउ द्वार छे, देव देवी रखवाल ॥ छत्र ध्वज श्रीकार छ, मणिमय तोरण माल ॥४॥ शालिभंजिका शोभती, धूपधाणां झलकार ॥ प्रतिद्वार वर वापिका, कांचन कमल उदार ॥ ५॥ कांचन २वा वीशे करे, देव छंद ईशान ॥ द्वार द्वार अतिदीपतां, वीश सहस सोपान ॥ ६ ॥ रत्न गहे द्वादश सभा, कनक गढे तिर्यंच ॥ रौप्य गढे वाहन रहे, वैर विरोध न रंच ॥ ७ ॥
॥ढाल पांचमी॥ ॥ शु नटवर वसंत थै थै नाची रह्यो ॥ ए देशी ॥ जिनराज बर्द्धमान पब्रह्म ब्यापी रह्यो,
व्यापी रह्यो सुप्रलापी रह्यो । जिनराज० ॥ शाखी-पुष्प वृष्टि दिव्य ध्वनि, भामंडल झलकार ॥
शिरपर छत्र चमर ढले, दुंदुभि नाद रसाल ॥ अनुपम ओपत विटपी अशोकथी, भविक लोक शोक कापी रह्यो, कापी रह्यो सुप्रलापी रह्यो
जिनराज० ॥१॥ १ पुतलीयो. २ गढ. ३ ईशान कोणमां. ४ पगथीयां. ५ सत्य शान. ६ उत्तम वचनो बोली रह्या छे. ७ वृक्ष.
For Private And Personal Use Only