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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बीमारी में पथ्य (DIET) पथ्य की महिमा वोमारी में विशेष मालूम पड़ती है और इसकी आवश्यकता भी तभी अधिक समझी जाती है अतः बीमारी में पथ्य का पालन बरावर किया जाये । पथ्य के सम्बन्ध में यह बात सदा स्मरण रखने की है कि तन्दुरुस्त और बीमार के खान पान में सदा फ़र्क रहता है । तन्दुरुस्त हालत में जो पदार्थ हितकारी होता है वही पदार्थ बीमारी में उसी आदमी को नुकसान भी कर सकता है। कितने ही पदार्थ स्वभाव से हितकारी होते हैं और तन्दुरुस्ती में उनका उपयोग बेखटके किया जा सकता है पर बीमारी में वेही पदार्थ हानि भी पहुंचाने वाले हो जाते हैं अतः तन्दुरुस्ती के समय का खान-पान बीमारी के समय भी लाभदायक समझ कर उपयोग करते रहना सदा उचित नहीं। बीमारी में रोग जल्दी दूर हो इसी का ध्येय रखना पड़ता है अस्तु बीमारी दूर होने में जिन साधनों से सहायता मिलती हो वे ही साधन तथा खान-पान हितकर समझ कर-पथ्य मानकर सेवन करना चाहिये और इसके लिये रोज के खानपान में योग्य फेरफार करके रोगानुसार भिन्न २ प्रकार का पथ्य पालन करना चाहिये। बीमार के लिये पथ्य पसन्द करते समय इस बात का ध्यान रखना ज़रूरी है कि वह पथ्य प्रथम तो उस रोग को दूर करनेवाला हो अथवा रोग के कारण को दूर करने में मदद देने वाला हो, शक्ति दायक हो (बोमारी में गेग-पोड़ा के कारण सहन-शक्ति-Resisting power इतनी घट जाती है कि वह उक रोग से आराम होने तक अपना टिकाव-सामना नहीं कर सकता अतः शक्ति बनाये रखने के लिये शक्ति दायक पथ्य का सेवन करना आवश्यक है)। जल्दी पच जाता हो और स्वादिष्ट भी हो। इन गुणों के साथ २ वह रोगी के मुत्राफ़िक भी श्राता हो और उस पर उसकी रुचि भो हो। For Private And Personal Use Only
SR No.020550
Book TitlePathya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchand Tansukh Vyas
PublisherMithalal Vyas
Publication Year
Total Pages197
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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