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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पके हुये होने चाहिये । व्यापारी लोग प्रायः द्रव्य कमाने की दृष्टि से बिगड़ी वस्तुओं को भी अच्छे रुप में बता कर धन कमाने का प्रपंच किया करते हैं और खरीदारों को धोका देते हैं अतः बहुत सावधानी से पदार्थ खरीदे जावें । अधपके वा हलकी किस्म-क्वालीटी के द्रव्यों का उपयोग बीमारों के पथ्य में न किया जावे । साधारण अवस्था में हलके धान्यों की बनी वस्तुयें इतना नुकसान नहीं करती वा उस नुकसान का अनुभव नहीं होता, पोषण द्रव्यों की कमी से उनसे शक्ति जितनी प्राप्त होनी चाहिये उतनी नहीं होती पर फिर भी आर्थिक अवस्था से यदि हलके धान्य ही व्यवहार करने को स्वास्थावस्था में लाचार होना पड़े तो चिन्ता नहीं, पर बीमारी में हलके धान्यादि पदार्थ वा खराब गाय का दूध व्यवहार किया जावे तो पथ्य ले लेने पर भी रोगी को उसका गुण पूरा २ नहीं मिलता जिससे जीवनी शक्ति जल्दी २ नहीं बढ़ती वा घटती हुई रुक नहीं जाती। कारण यही है कि पथ्य के पदार्थ हलके, पुराने सड़े, गले, होने से वे निकसे-निर्गुण वाले होते हैं, उनमें पूरा गुण नहीं रहता, वे शक्ति बढ़ाने का गुण नहीं रखते, उनका स्वाद स्वाभाविक नहीं होता, उनका रूप, गन्ध कुछ और ही प्रकार का होता है अस्तु अस्वस्थावस्था में जो खान पान दिया जावे उनके पदार्थ उत्तम जाति के हो। __ पीने का पानी भी अच्छे कुंए का, हलका, मीठा और स्वच्छ और अच्छी तरह से छना हुआ, ताजा होना चाहिये। पथ्य भले प्रकार तैयार किया जावेबनाया जाव-पथ्य अच्छी तरह से पकाया जावे। कञ्चे, अधपके, बले हुये या धुश्रां लगे पथ्य न तो स्वादिष्ट होते हैं और न गुण ही करते हैं । पथ्य ताकीद For Private And Personal Use Only
SR No.020550
Book TitlePathya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchand Tansukh Vyas
PublisherMithalal Vyas
Publication Year
Total Pages197
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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