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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पभ्य को उस आदर्श प्रणाली को फिर से नियमित प्रचलित कर शोक सन्ताप से बचिये । साथ ही वैचों का भी कर्तव्य है, कि वे अनावश्यक पथ्य का वृथा बोझ डाल कर रोगी को निष्प्रयोजन बेचैन न बनाया करें ।नहीं तो अब समय ने पलटा खा लिया है, और वे अपने इन कृत्यों से आयुर्वेद की हानि कर स्वयं हास्यास्पद बनेंगे। पथ्य के सम्बन्ध में कुछ स्मरण रखने योग्य वचनः(१) इस संसार में पथ्य से बढ़कर आरोग्य देने वाली कोई भी वस्तु नहीं है। (२) मनुष्य के लिये पथ्य रखना वैद्यकशास्त्र में नितान्त आवश्यकीय माना है। (३) स्वास्थ्य की इच्छा रखने वाले प्रत्येक मनुष्य को पथ्य से चलना चाहिये। (४) बीमारी में पथ्य की ओर विशेष ध्यान रखना हितकारी होता है। (५) बीमार को ही पथ्य से चलना चाहिये सो बात नहीं है। किन्तु निरोग को भी पथ्यापथ्य के नियमों को पालने की और भी अधिक आवश्यकता रहती है। (६) बच्चों के पथ्य की ओर माता पिताओं का विशेष लक्ष्य रहना चाहिए, क्योंकि वे बोल कर कोई बात नहीं कर सकते हैं। (७) आयुर्वेदशास्त्र में पथ्य से होने वाले लाभों का विस्तार से वर्णन किया गया है। () अनेक रोगों का मूल कारण पथ्यापथ्य सम्बन्धी अज्ञानता ही है। For Private And Personal Use Only
SR No.020550
Book TitlePathya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchand Tansukh Vyas
PublisherMithalal Vyas
Publication Year
Total Pages197
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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