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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १६७ ) खिचड़ी। पथ्य रूप में सेवन की जाती है। दस्तावर है। पचती जल्दी है पर रोटी की अपेक्षा-अन्दाज न होने से ज्यादा खाने में श्रा जाती है और अधिकता के कारण-देर से पचती है। घृत मिला कर खाने से भी देर से पचती है। दाल और चावल अलग २ सीजो कर फिर मिला कर खाने की अपेक्षा खिचड़ी भारी होती है कारण चावलों का मांड उसी में रहता है। यह धुपो और तुसोवाली दो प्रकार की होती है। तूसों वाली देर से पचती है परन्तु उसमें पौष्टिक तत्व अधिक रहता है । धुपी हुई वादी करतो है पर वह कुछ निकसी भी होती है। जुलाब में यह प्रायः सेवन की जाती है, इसे नरम २ धान कहते हैं, ठण्डी नुकसान करती है । दूध के साथ नहीं खानी चाहिये। इसका पालन सैन्धव नमक है। घाट। मक्को का बनता है। देर से पचता है। निर्बलावस्था में इसे सेवन नहीं करना चाहिये। छाछ से यह जल्दी पचता है । क्षार तथा दही इसको जल्दी पचाते हैं । बादी करता है । बीमारों का पथरा नहीं है। खीच । बहुत देर से पचता है। मंदाग्नि वाले को नहीं खाना चाहिये । बीमारों का यह पथ्य भी नहीं है । बीमारी में जब रोग पीछा उथला खाता हो तब इसके सेवन से पाचक For Private And Personal Use Only
SR No.020550
Book TitlePathya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchand Tansukh Vyas
PublisherMithalal Vyas
Publication Year
Total Pages197
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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