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( १४८ )
कर पीना चाहिये । मन्दाग्नि वालों को सन्निपात आदि वस्था में जल मिलाकर, उबाल कर, जब जल बल चुकता है सब छान कर पिलाते हैं । संग्रहणी, मन्दाग्नि और पाचनशक्ति कमजोर होने पर इसकी थर उतार छान कर देते हैं ।
दूध पर बीमार बहुत समय तक रह सकता है। कितने ही रोगों में अन्न बन्द कर देने की जरूरत होती है तब केवल दूध ही दिया जाता है और उससे उसकी वह बीमारी दूर होकर ताक़त रहती है। हमने संग्रहणी, पाण्डु, शोथ और उदर रोग
अनेकों को केवल दूध देकर अच्छे किये हैं । कोई तकलीफ रोगी को मालूम नहीं होती है। दूध बढ़ाते २ चार पांच सेर तक दिया जाता है और श२ मास तक भी दिया है।
मनाई है पर यदि
दिया जावे तो हानि देना चाहिये-नय
ज्वर के प्रारम्भ में दूध की शास्त्रों में सौंठ, पीपल, तुलसी वा केसर मिला के नहीं करता। कफ की बोमारी में दूध कम में मना नहीं है— पर तब भी चुने के पानी व सोडे के साथ जरूरत होने पर दिया जा सकता है। जिस से वह जल्दी पच जावे कब्ज करे। लंघन की अवस्था में जब रोगी कमजोर होता जाता हो उस समय उसकी जीवन-शक्ति बनाई रखने के लिये दूध - थोड़ा २- सोंठ, पीपल, दालचीनी, तुलसी वा केसर, चने का पानी, सोडा वा केवल जल मिला कर ही देना चाहिये ।
रोग की तीव्र अवस्था में अथवा पाचन शक्ति कमजोर होने पर खांड नहीं मिलानी चाहिये । खांड की अपेक्षा दूध में मिसरी मिलाना अधिक लाभदायक है । सहत, मिनका दाख फ्रूट्स भी मिलाकर दिये जा सकते हैं। अनेक लोग घृत मिला कर भी लेते हैं पर बीमार के लिये नहीं किन्तु ताक़त के लिये है । जो लोग निर्बलावस्था में ताकत के लोभ से घी मिला
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