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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org पाण्डुलिपि-ग्रन्थ-रचना-प्रक्रिया / 53 अर्थात् श्वेतगिरि (हिमालय) जितना बड़ा ढेर कज्जल का हो, जिसे समुद्र जितने बड़े पानी से भरे पात्र (दवात) में घोला जाय, देव वृक्ष ( कल्प वृक्ष) की शाखाओं से लेखनी बनाई जाय (जो कभी समाप्त न हो) और समस्त पृथ्वी को पत्र (कागज) बनाकर शारदा ( स्वयं सरस्वती) लिखने बैठे और निरन्तर लिखती रहे तो भी हे ईश ! तुम्हारे गुग्गों का पार नहीं है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हिम्न स्तोत्र का रचनाकाल 9वीं शताब्दी से पूर्व का माना गया है किन्तु उक्त लोकको प्रक्षिप्त मानकर कहा गया है कि मूल स्तोत्र के तो 31 ही श्लोक हैं जो अमरेश्वर के मन्दिर में उत्कीर्ण पाये गये हैं । 15 श्लोक बाद में स्तोत्र पाठकों द्वारा जोड़ लिये गये हैं । 1 परन्तु यह निश्चित है कि विस्तृत पत्र और स्याही यदि लेखन के प्रावश्यक उपकरणां के व्यापक प्रयोग के प्रमाण 8वीं शताब्दी के माहित्य में भी उपलब्ध होते हैंसुबन्धु कृत 'वासवदत्ता' कथा में भी एक ऐसा ही उद्धरण मिलता है। 'त्वत्कृते यानया वेदानुभूता सा यदि नमः लिपिक रायते भुजगपतिर्वाक्कथकः तदा किमपि कथ्यते वा 12 पत्रायते सागरों लोलायते ब्रह्मा कथमप्येकेकैर्यु सहस्रं रभि लिख्यते अर्थात् आपके लिए इसने जिस वेदना का अनुभव किया है उसको यदि स्वयं ब्रह्मा लिखने बैठे, लिपिकार बने, भुजगपति शेषनाग बोलने वाला हो ( साँप की जीभ जल्दी चलती है) और लिखने वाला इतनी जल्दी-जल्दी लिखे कि कलम डुबोने से सागर रूपी दवात में हलचल मच जाये तो भी कोई एक हजार युग में थोड़ा बहुत ही लिखा जा सकता है । पाश्चात्य जगत् में हमें प्राचीनतम स्याही काली ही विदित होती है। सातवीं शती ईस्वी से काली स्याही के लेख मिल जाते हैं । यह स्याही दीपक के काजल या घुये सेतो बनती ही थी, हाथी दाँत को जलाकर भी बनायी जाती थी । कोयला भी काम में आता था । " बहुत चमचमाती लाल स्याही का उपयोग भी होता था, विशेषतः प्रारम्भिक प्रक्षरों के लेखन में तथा प्रथम पंक्ति भी प्रायः लाल स्याही से होती थी । नीली स्याही का भी नितांत प्रभाव नहीं था । हरी और पीली स्याही का उपयोग जब कभी ही होता था । सोने और चांदी से भी पुस्तकें लिखी जाती थीं । भारत में हस्तलेखों की स्याही' का रंग बहुत पक्का बनाया जाता था । यही कारण है कि वैसी पक्की स्याही से लिखे ग्रन्थों के लेखन में चमक अब तक बनी हुई है । विविध प्रकार की स्याही बनाने के नुस्खे विविध ग्रन्थों में दिये हुए हैं। वैसे कच्ची 1. Brown, W. Normon-The Mahimnastava (Introduction). p. 4-6. 2. शुक्ल, जयदेव (सं.) - वासवदत्ता कथा, पृ. 39 3. The Encyclopaedia Americana (Vol. 18 ), p. 241. 4. भारत में स्याही का पर्यायवाची मसी या मषी था । प्राचीन काल में इन्हीं का उपयोग होता था । ई. पू. . के ग्रन्थ 'गृह्य-सूत्र' में यह शब्द आया है । 'मसी' का अर्थ डॉ. राजवली पांडेय ने बताया हैमसलकर बनाई हुई । व्हूलर ने इसका अर्थ चूर्ण या पाउडर बनाया है । स्याही के लिए एक दूसरा 'मेला' शब्द भी प्राचीन काल में कहीं-कहीं प्रयोग में आता था। व्हूलर ने 'मेला' की व्युत्पत्ति 'मला' नमानी है। मेला = dirty : black : गंदा या काला। डॉ० पाण्डेय ने ठीक बताया है कि यह For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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