SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पाण्डुलिपि-ग्रन्थ रचना-प्रक्रिया / 41 पहले जैसा अशोक के शिलालेखों में मिलता है, जहाँ छूट हुई वहाँ उस वाक्य के ऊपर या नीचे छूटा हुआ अंश लिख दिया जाता था । कोई चिह्न विशेष नहीं रहता था । फिर ऊपर संशोधक चिह्नों में 'पतित पाठ दर्शक चिह्न' बताया गया है । इसे हंसपग, मोर पग या का पद कहते हैं । इसे छूट के स्थान पर लगा कर छूटा पद पंक्ति के ऊपर या हाशिये में लिख दिया जाता है । पतित पाठ का अर्थ ही छूटा हुआ पद है । का पद VAX L ये भी हैं और x + ये भी हैं । www.kobatirth.org किन्तु कभी-कभी इस कट्टम (X + ) के स्थान पर स्वस्तिक 5 का प्रयोग भी मिलता है । यह भी छूट का द्योतक है और काक पद का ही काम करता है । कुछ अन्य चिह्न 5 स्वस्तिक का उपयोग कहीं-कहीं एक और बात के लिए भी होता आया है : जहाँ कहीं प्रतिलिपिकार को अर्थ अस्पष्ट रहता है, वह समझ नहीं पाता है तो वह वहाँ यह स्वस्तिक लगा देता है या फिर 'कुंडल' (O) लगा देता है। कुंडल से वह उस अंश को घेर देता है, जो उसे अस्पष्ट लगा या समझ में नहीं आया । (४) सकेताक्षर या 'संक्षिप्ति चिह्न" (Abbreviations) भारत में शिलालेखों तथा पांडुलिपियों में संक्षिप्तीकरण पूर्वक संकेताक्षरों की परिपाटी आन्ध्रों घोर कुषाणों के समय से विशेष परिलक्षित होती है । विद्वानों ने ऐसे संकेताक्षरों की सूची अपने ग्रन्थों में दी है । वह यों है : 1. सम्वत्सर के लिए सम्व, संव, सं या स० 2. ग्रीष्म 2 - ग्री० (०) गं० गि० या गिगहन 3. हेमन्त हे० 4. दिवस-दि० 5. 6. 7. 8. 9. 10. 11. 12. 13. 14. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाद--पा० शुक्ल पक्ष दिन-सु० सुदि० या सुति० । शुक्ल पक्ष को शुद्ध भी कहा जाता है । बहुल पक्ष दिन- ब०, ब०दि०, या बति० द्वितीय- द्वि० सिद्धम् - प्र० श्री० सि० राउत - रा० दूतक - दू० (संदेश वाहक या प्रतिनिधि) गाथा - गा० श्लोक - श्लो० ठक्कुर-ठ० 1. यह पर्याय प्रो. वासुदेव उपाध्याय द्वारा दिया गया है, प्राचीन भारतीय अभिलेखों का अध्ययन, पृ० 206 : .. उपाध्याय जी ने गृष्म रूप दिया है । वही, पृ० 260 For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy