________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
38/पाण्डुलिपि-विज्ञान
नेपाल, गुजरात, राजपूताना आदि में यह अक्षर-क्रम ई० स० की 16वीं शताब्दी तक कहींकहीं मिल जाता है। जैसे कि,
३३- ला, १00 ४.१०२- पृ.१३९- १. १५०-४.२०E
आदि ।
(6) संशोधन :-संशोधन का एक पक्ष तो उन प्रमादों से सावधान करता है. जो लिपिकार से हो जाते हैं, और जिसके कारण पाठ भेद की समस्या खड़ी हो जाती है। यह पाठालोचन के क्षेत्र की बात है और वहीं इसकी विस्तृत चर्चा की गयी है।
दूसरा पक्ष है हस्तलिखित ग्रन्थों में लेखन की त्रुटि का संशोधन जो स्वयं लिपिकार ने किया है । मुनि पुण्य विजय जी ने ऐसी 16 प्रकार की त्रुटियाँ बतायी हैं, और इन्हें ठीक करने या इनका संशोधन करने के लिए लिपिकारों द्वारा एक चिह्न-प्रणाली अपनायी जाती है, उसका विवरण भी उन्होंने दिया है।
ऐसी त्रुटियों के सोलह प्रकार और उनके चिह्न नीचे दिये जाते हैं : त्रुटिनाम चिह्ननाम
चिह्न
-
-
-
-
x
1. पतित पाठ (कहीं पतित पाठ दर्शक चिह्न
____A.V.x.x.x किसी अक्षर या शब्द को 'हंस पग' या 'मोर का छूट जाना पग' कहा गया है। हिन्दी 'पतित पाठ' है) में 'काक पद' कहते हैं । 2. पतित पाठ विभाग पतित पाठ विभाग दर्शक
चिह्न 3. 'काना' [मात्रा की काना दर्शक चिह्न भूल]
'रेफ के समान होने से भ्रान्ति के कारण यह भी पाठ-भ्रान्ति में
सहायक होता ही है। 4. अन्याक्षरः [किन्हीं अन्याक्षर वाचन दर्शक
W प्रायः समान-सी चिह्न
जिस अक्षर पर यह चिह्न लगा ध्वनि वाले अक्षरों
होगा, उसका शुद्ध अक्षर उस में से अनुपयुक्त
स्थान पर मानना होगा । यथाः अक्षर लिख दिया
W गया ।
सत्रु । जहाँ स पर यह चिह्न है
W
अतः इसे 'श' पढ़ना होगा, खत्रिय
पढ़ा जायगा 'क्षत्रिय' । पाठपरावृत्ति दर्शक चिह्न 2, 1
लिखना था 'बनचर' लिख गये
5. उलटी-सुलटी
लिखाई
For Private and Personal Use Only